Monday, June 11, 2018

ग्रहण, अंधविश्वासों का वैज्ञानिक सहारा


आज जो बाते मैं आपके साथ साझा करने वाला हूँ , ये बातें मैंने ग्रहण संबंधी अलग अलग कार्यक्रमों के दौरान शिक्षक और विद्यार्थिओं से की है| अक्सर जब कोई खगोलीय घटना होनी होती है, तब हम शिक्षक, विद्यार्थी और समुदाय में ऐसी घटनाओं को लेकर कुछ जागरुकता एवं सजगता के लिए कार्यक्रम करते है| ग्रहण जैसी खगोलीय घटना को लेकर ज्यादातर लोगों में भय होता है| साथ ही लोगों का कुछ मान्यताओं पर भी गहरा विश्वास होता है | इससे जुड़ा हुआ एक अनुभव में आपको बताना चाहूँगा | गत वर्ष की बात है, जब राखीपूर्णिमा थी | मैं बाज़ार से गुज़र रहा था कि तभी मैंने देखा दो बाइक सवार एक दुसरे से भीड़ गए| दोनो बाइक सवार गिर गए | उन्हें लोगों ने उठाया और पूछताछ की कि भाई कही लगी तो नहीं, कहाँ जा रहे थे इतनी तेज़ी से? जवाब था, “जी, ग्रहण शुरू होने वाला है तो उससे पहले ही राखी बंधवानी थी, देर हो रही थी इसीलिए तेज़ी से जा रहे थे |” आप समझ ही सकते है की किस प्रकार लोग ग्रहण को अशुभ मानते है और शुभ समझे जाने वाले धार्मिक विधिओं को ग्रहण में करना नहीं चाहते| सिर्फ धार्मिक विधियाँ ही नहीं किसी भी प्रकार के दैनिक कार्य भी लोग ग्रहण समय में नहीं करते | इसके अलावा भी कई प्रकार के अंधविश्वास ग्रहण को लेकर आमजन मे व्याप्त है।  


पूर्ण सूर्यग्रहण image source: internet
इसके पीछे की वजह अगर हम देखना चाहे तो, पुराने समय से मनुष्य ने प्रकृति में एक व्यवस्थित संचालन को देखा है | यह संचालन सूर्य का उदय और अस्त होना, दिन रात का बनना, चन्द्र का घटना बढ़ना (कलाएं), ऋतुओं का आना जाना, सब एक नियत क्रम में होता है | पर कभी-कभी इन नियमित चलने वाली घटनाओ में व्यवधान आते है | जैसे जब किसी दिन आकाश में सूर्य पूरी चमक से मार्गक्रम करता है और तभी उसकी रोशनी कम होते होते अँधेरा छा जाता है तो लगता है जैसे सृष्टि का चक्र गड़बड़ा गया हो | जाहिर सी बात है, जब मनुष्यों के खोजबीन के तरीकों में वैज्ञानिक जाँच पड़ताल नहीं थी, तब इसका कारण किसी दैवीय या असुरी शक्ति को मान लिया जाता था| ऐसा ही चंद्रग्रहण के दौरान भी होता था| चन्द्रमा की चमक फीकी पड़कर वह लाल रंग का हो जाता था | ग्रहणों को दुनिया भर की सभ्यताओं में एक बुरी घटना के रूप में ही देखा जाता था और आज भी देखा जाता है|


दुनियाभर में ग्रहण को एक बुरी घटना के रूप में देखा जाता था, क्योंकि इन्सान इसके वास्तविक कारणों को नहीं जानते थे | image source, internet
ग्रहण के पीछे के कारण के रूप में भारत में एक कहानी सुनने को मिलती है | समुद्र मंथन के वक़्त जब अमृत कलश निकला तब असुरों ने इस पर अपना हक़ बताया | असुर अगर अमृत पी गए तो अमर हो जायेंगे, यह देवों को मंजूर न था | तब विष्णु ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर असुरों को मोहित कर लिया | विष्णु के स्त्री रूप मोहिनी से असुरों ने अमृत कलश विष्णु को सौंप दिया | विष्णु जब देवों को अमृत बांटने लगे, तब एक असुर राहू, जिसे विष्णु की चाल समझ आ गयी थी, वह भी देवों की पंक्ति में आ कर बैठ गया| उसे भी अमृत दिया गया | लेकिन सूर्य-चन्द्र ने उसे पहचान कर विष्णु को बता दिया | विष्णु ने अपने चक्र से उसका सर धड से अलग कर दिया लेकिन तब तक तो राहू अमृत पी कर अमर हो चुका था| वह वैसे ही दो टुकड़ो में जिन्दा रहा जहां शरीर के सर वाले हिस्से को राहू और धड वाले हिस्से को केतु कहा गया | कहा जाता है की राहू, सूर्य और चन्द्र से उन्हें ग्रास कर (खा कर) बदला लेता है |


इस कहानी में राहू, सूर्य और चन्द्रमा की वजह से देवों की पंक्ति में मारा गया |  image source internet
ग्रहण के दौरान लोग सूर्य चन्द्र की राहू-केतु से मुक्ति के लिए तरह तरह की चीजें करते है | जैसे शोर मचाते है, ढोल बजाते है, जिससे जो भी असुरी शक्ति है वह सूर्य चन्द्र को छोड़ दे | यज्ञ – हवन, पूजा पाठ किये जाते है | भगवानों की मूर्तियों को ढका जाता है या फिर पानी में रखा जाता है, ताकि राहू और केतु की छाया भगवान पर न गिरे | लोग इन राहू केतु को सच मानते है और इनसे डरते भी है | लेकिन वास्तव में देखा जाये तो राहू केतु से ग्रहण नहीं होते| सूर्य को ग्रहण तब लगता है जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आता है | सूर्य और चन्द्र हमारे आकाश में लगभग एक ही आकार के दिखते है इसलिए चन्द्र सूर्य को ढक पाता है| सूर्य के सामने आने की वजह से चन्द्रमा की छाया बनती है और धरती पर जिस जगह वह गिरती है वहा से लोग सूर्यग्रहण देख पाते है | चन्द्रग्रहण में चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है और धरती की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है | जिन छायाओं को अशुभ समझा जाता है वास्तव में ये छायाएं चन्द्र और पृथ्वी की होती है। जिन्हें राहू और केतु समझा जाता है, वे असल मे काल्पनिक गणितीय बिंदु है| चन्द्रमा की कक्षा, पृथ्वी-सूर्य के तल को दो बिन्दुओं में छेदती है | यह छेदन बिंदु ही है राहू (Ascending node) और केतु (Descending node)| यह कोई वास्तविक पिंड नहीं है | इन बिन्दुओं पर सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के सामने या विरुद्ध आते है और ग्रहण की स्थितियां बनती है |


राहू और केतु काल्पनिक गणितीय बिंदु है, जहाँ चन्द्रमा की कक्षा, पृथ्वी-सूर्य के तल को दो बिन्दुओं में छेदती है | image source internet
ग्रहण के दौरान लोग ग्रहण छाया से पानी और खाने आदि को बचाने के लिए कुछ शुध्द समझी जाने वाली वनस्पति का इस्तेमाल भी करते है | जैसे भारत के कुछ हिस्से में पानी में तुलसी पत्र रखा जाता है | अगर खाने पीने की चीजों पर तुलसीपत्र नहीं रखा गया तो माना जाता है की ग्रहण छाया से यह अशुद्ध हो गया है और उन चीजों को फेंक दिया जाता है | काफी बार यह भी कहा जाता है की हमारे पुराण में विज्ञान है | ग्रहण समय पर खाने पीने की चीजों पर तुलसीपत्र रखे जाने के पीछे कारण दिया जाता है की सूर्य चन्द्र की रोशनी जिस समय पृथ्वी पर नहीं रहती है, उस समय खाने पीने की चीजो में जीवाणु पनप जाते है | हर धर्म में लोग यह कोशिश करते है की किस तरह उनके धर्म या परम्पराओं में विज्ञान है | लेकिन यह जाने बिना की आज के विज्ञान की नीव जिन प्रयोगों के आधारों पर खडी है, वे ऐसे दावों को खोखला साबित कर देते है | विज्ञान कहता है की जीवाणु उन परिस्थितिओं में पनपते है जो उनके लिए उपयुक्त होती है | जैसे सही तापमान, नमी और उनके भोजन की उपलब्धता | हमारे खाने में जीवाणु कभी भी पनप सकते है | गर्मियों और बरसात के वक्त खाने में तुलसीपत्र रखने पर भी खाने में जीवाणु पनप सकते है | जीवाणुओं को पनपने के लिए अगर सिर्फ कम रोशनी चाहिए होती तो पृथ्वी पर  ऐसी परिस्थिति हर रोज लगभग बारह घंटे रात के समय होती है| लेकिन मनुष्य को तो कभी ऐसी जीवाणुओं की भरमार का सामना नही करना पड़ा| हमारे खाने पीने की चीजे सिर्फ ग्रहण में दूषित होती यह समझना गलत है |

पढ़े लिखे लोगों  मे भी ऐसे विश्वास पाये जाते है जो इन धारणाओं को आसानी से नहीं छोड़ते | एक स्कूल में ग्रहण के बारे में बच्चों से बातचीत कर रहा था| पूरी बात हो गयी | उनके शिक्षक जो भूगोल पढ़े हुए थे, जो जानते थे की कैसे ग्रहण महज परछाई का खेल होते है , उनका कहना यह था की “भाई ठीक है विज्ञान जो कहता है सो तो है, लेकिन हमारे पूर्वज जो करते थे उसके पीछे कोई तर्क तो होगा| तो क्यूँ नहीं सिर्फ सेफ साइड के लिए हमे खाने पीने की चीजों पर तुलसीपत्र रखना चाहिए |” यहीं गड़बड़ हो जाती है | हम मानते है की हमारे पूर्वज सब जानते थे, लेकिन यह मानने में भी बुराई नहीं की हमारे पूर्वज सब चीजे नहीं जानते थे | सिर्फ सेफ साइड रखने के लिए हम फिर से उन अंधविश्वासों को मजबूत बनाने का ही काम करते है जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है| जब ग्रहण होता है, तो चन्द्रमा की छाया धरती के एक बड़े हिस्से पर गिरती है| जहाँ नदियां, तालाब, खेत और वन होते है | क्या ग्रहण की छाया से यह दूषित हो जाते है? और क्या किसी वनस्पति से पृथ्वी के इतने बड़े भूभाग को शुद्ध किया जा सकता है? हम इसी भू-भाग के संसाधनों को ही ग्रहण के बाद उपयोग में लाते है| वास्तव में मनुष्य सृष्टि पर अपना अधिकार जता कर उसकी ग्रहण से रक्षा करने की चेष्टा करता है, पर देखा जाए तो यह खुद की हंसी उड़ाने जैसा है |


ग्रहण को एक प्राकृतिक घटना के तौर पर ही देखा जाना चाहिए| image source internet
एक और भ्रान्ति के समर्थन में वैज्ञानिक कारणों का सहारा जाता है | गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान बाहर नहीं जाना चाहिए क्योंकि ग्रहण के दौरान हानिकारक रेडिएशन धरती पर आता है | दावा करनेवाले कहते है की, वैज्ञानिक भी इसे मानते है और इसीलिए ग्रहण देखने से मना करते है | वैसे वैज्ञानिको का दावा किसी और ही परिपेक्ष से है | हानिकारक रेडिएशन की बात करे तो जब भी हमारे आकाश में सूर्य होता है, तब भी बड़ी मात्रा मे हानिकारक रेडिएशन धरती पर आता रहता है| सामान्य दिन के सूर्य को भी देखना हानिकारक होता है | ग्रहण के सूर्य से भी यही रेडिएशन आता है | लेकिन वैज्ञानिक ग्रहण को देखने से मना नहीं करते | वे सिर्फ यही कहते है की आप ग्रहण के फ़िल्टर चश्मों से इसे देखिये |  चन्द्रमा का तो अपना खुद का प्रकाश नहीं है तो उससे हानिकारक रेडिएशन आने कि कोई संभावना ही नहीं | जब चंद्रग्रहण होता है तो चन्द्रमा खुद पृथ्वी की छाया में चला जाता है तो यहाँ किसी भी प्रकार का रेडिएशन नहीं आता | विज्ञान की उथली समझ रखने वाले लोगों ने इन मान्यताओं में आम लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए विज्ञान का बिना सोचे समझे इस्तेमाल किया है |

ऐसी घटनाओं के दौरान सबसे ज्यादा आतंक टीवी न्यूज़ चैनल और अखबार फैलाते है | अपना TRP बढाने के लिए किसी बाबा या साधू को बुलाकर किस तरह से ग्रहण के मनुष्य जीवन पर परिणाम होंगे, इसे बताया जाता है | सबसे ज्यादा अंधविश्वास ऐसे समय में न्यूज़ मीडिया द्वारा फैलाया जाता है | इन्हें देखने वाला दर्शक वर्ग इससे प्रभावित होता है | ऐसे समय में न्यूज़ मीडिया को जिम्मेदारीपूर्ण काम करते हुए, इसके असली कारणों के बारें में लोगों को बताना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए |


मेरे मित्र ने यह कार्टून मुझे whatsapp पर भेजा था, आज का सच है |
शिक्षक क्या कर सकते है ? बच्चों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए यह एक अच्छा अवसर होता है |  अगली बार किस तारीख को ग्रहण होने वाला है, इसका क्या अर्थ है, यदि इस प्रकार कि चर्चा व इसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण है यदि विद्यार्थियों को बताया जाए तो यह उनके लिए ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा। मनुष्यों ने काफी समय प्रकृति की इस घटना का अवलोकन किया, चन्द्र सूर्य पृथ्वी के गति का अवलोकन किया और उन्हें गणितीय सूत्रों में बाँधा और बताया की अगली बार कब होगा | ग्रहण कोई दैवीय घटना नहीं है जो किसी अलौकिक शक्ति की मर्जी से होता हो | ग्रहण सिर्फ एक प्राकृतिक घटना है | विज्ञान के अवलोकन, अध्ययन, तार्किकता हमे प्रकृति में घटने वाली घटनाओं के पीछे के सही कारण पता करने की क्षमता देता है | वैज्ञानिक सोच हमे प्रश्न करना सिखाती है | इस सोच के साथ हम हमारे विद्यार्थिओं को रुढ़िवादी विचार और और अन्धविश्वासों पर प्रश्न करना सिखा सकते है |

बच्चों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए यह ग्रहण अच्छा अवसर होता है | image source internet