हमारी धरती का आकार कितना बड़ा है यह हमने कब जाना होगा? काफी लोगो का मानना है कि कोलंबस जब हिंदुस्तान की खोज में समुद्री यात्रा पर निकले थे तब उन्होंने धरती का आकार नापा था| लेकिन कोलंबस को जो आंकड़ा मिला वो आज की तुलना में काफी छोटा था| कुछ लोग मानते है कि जब कोलंबस के बाद लोगो ने दूर की समुद्री यात्रायें शुरू करी तब उन्होंने धरती का आकार नापा होगा| लेकिन धरती के आकार को उससे भी कई सदियों पहले नापा गया था| यह कारनामा किया था एराटोस्ठेनिस ने वह भी दो हज़ार साल पहले,तब तक इंसानों को ना अमेरिकी महाद्वीप के बारे न पता था और ना ही ऑस्ट्रेलिया या अन्टार्क्टिक महाद्वीप के बारे में| तब तक प्रशांत, अटलांटिक और हिन्द महासागर भी पूरी तरीके से इंसानों को पता नहीं थे| (यहाँ हम उन इंसानों की बात कर रहे है, जिन्होंने इतिहास लिखा है| वैसे अन्टार्क्टिक को छोड़ कर सभी महाद्वीपों पर इन्सान बसते थे| लेकिन उस दौर में बहुत कम सभ्यतायें एक दूसरे के बारे में जानती थी|) आज की दुनिया के मुकाबले मान लीजिये हमे सिर्फ एक चौथाई धरती की ही जानकारी थी| फिर भी एराटोस्ठेनिस ने पृथ्वी को लगभग सही ही नाप लिया था|
एराटोस्ठेनिस का जन्म कायरिन (Cyrene) नाम के शहर में 276 इसा पूर्व में हुआ था| यह शहर उस समय ग्रीक साम्राज्य का हिस्सा था| आज यह जगह शहात नाम से जानी जाती है और यह लीबिया देश का हिस्सा है| एराटोस्ठेनिस ने अपनी शिक्षा अथेंस शहर से पूरी की और शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने मूल शहर कायरिन में वापस आ गए| तीस उम्र की आयु में उन्हें अलेक्झांड्रिया (Alexandria) शहर के शासक टोलेमी III ने अपने बेटे की पढाई के लिए शिक्षक के रूप में नियुक्त किया| उस दौरान अलेक्झांड्रिया लाइब्रेरी के मुख्य लाइब्रेरियन का देहांत हुआ तब अलेक्झांड्रिया के शासक ने एराटोस्ठेनिस को मुख्य लाइब्रेरियन नियुक्त किया|
एराटोस्ठेनिस में कई हुनर थे| उन्हें कई विषयों में महारथ हासिल थी जैसे भूगोल, खगोल-विज्ञान, गणित, साहित्य, काव्य और इतिहास| उनके द्वारा कहा गया सारा काम अतीत में कही गुम हो गया| एराटोस्ठेनिस के काम की जानकारी हमे दुसरे दार्शनिकों से मिलती है, जैसे क्लेओमेडस, प्लीनी, स्ट्राबो और टोलेमी|
धरती का आकार
उस जमाने में लोग जानते थे कि हमारी धरती का आकार एक गोले जैसा है| इस निष्कर्ष पर लोग कई अवलोकनों के आधार से पहुंचे थे| जैसे उस वक़्त समुद्री यात्राओं पर जानेवाले जहाज दूर समुद्र में जाते तो किनारे पर से दिखता था कि धीरे धीरे जहाज का निचला हिस्सा डूब रहा है| फिर ध्वजस्तम्भ डूबता दिखता और फिर बाद में उस पर लगी ध्वजा भी डूबती दिखती| लोगो को लगता की जहाज डूब गया है| लेकिन कुछ दिनों बाद वही जहाज किनारे लौट आता| यह इसीलिए संभव है जब धरती गोल है और इसी वजह से जहाज धीरे धीरे दृष्टिक्षेप से ओझल हो जाता| दुसरे अवलोकन मे चन्द्रग्रहण के वक़्त जब धरती सूरज और चन्द्रमा के बीच आ जाती तब चन्द्रमा पर धरती की गोल परछाई दिखाई देती थी| लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था की धरती का गोला कितना बड़ा होगा| इसे नापने की कोशिशे तो बहुत लोगो ने की पर किसी को सफलता नहीं मिली| उस वक़्त तक ज्यमिती विषय पर लोगो की समझ बन गयी थी| इसी ज्यामिति का उपयोग कर एराटोस्ठेनिस ने धरती का आकार नाप लिया|
एराटोस्ठेनिस काम के सिलसिले में अलग अलग शहर यात्रायें करते थे| ऐसे ही एक दिन वह अलेक्झांड्रिया के दक्षिण स्थित सायन (Syene) शहर में थे| दोपहर के वक़्त उन्होंने देखा की एक कुँए में सूरज की रोशनी सीधे कुँए के तल तक पहुंची हुई थी| सायन में उस दिन सूरज सीधा माथे पर था और आसपास के चीजों कि छाया भी सीधे निचे बन रही थी| (सायन शहर जो आज आस्वान नाम से जाना जाता है, उसकी स्थिति कर्क रेखा पर है| हम जानते है कि 22 जून को सूर्य इस रेखा पर होता है|) फिर अगली बार उसी दिन जब अलेक्झांड्रिया में थे, उन्होंने देखा की सूरज माथे पर होने के बावजूद चीजों की छाया पड रही थी| उन्होंने सोचा कि सायन में इसी दिन चीजों की छाया सीधे निचे बनती है, लेकिन यहाँ पर तो ऐसा नहीं हो रहा है| मतलब सूरज से आने वाली किरणों का कुछ कोण बन रहा है| यह तभी मुमकिन होगा जब धरती गोल होगी| अगर सूरज की किरणों का कोण मापा जाये तो पृथ्वी का आकार भी पता किया जा सकता है|
अगर हमे वृत्त पर बननेवाला कोण पता है और और चाप का मान पता है तो हम वृत्त की परिधि निकाल सकते है| एराटोस्ठेनिस ने उस दिन सूरज की रोशनी का कोण एक छड़ी की सहायता से नाप लिया जो 7.2 डिग्री था| सूरज की किरणे धरती पर सामानांतर रूप में गिरती है, तो छड़ी से बनने वाला कोण वृत्त के केंद्र से बननेवाले कोण का एकांतर (alternate angle) कोण भी होगा| एकांतर कोण एक दुसरे के समान होते है| एराटोस्ठेनिस को अलेक्झांड्रिया और सायन के बिच दुरी पता थी, यह था हमारे धरती के वृत्त का चाप| यह मान 5000 स्टेडिया था| स्टेडिया, दुरी नापने की ग्रीक इकाई थी| यह इकाई ग्रीक स्टेडियम याने उनके मैदानों के बराबर थी| एक स्टेडिया का मान उस समय ग्रीक में अलग था और मिस्र में अलग था| ग्रीक में एक स्टेडिया आज के 185 मीटर और मिस्र में 157 मीटर बराबर है|
अलेक्झांड्रिया और सायन की दुरी के साथ वृत्त के एक कोण और पुरे वृत्त के कोण की तुलना कर पुरे वृत्त का मान निकाला जा सकता है|
360 डिग्री / 7.2 डिग्री = धरती की परिधि / अलेक्झांड्रिया और सायन की दुरी
360 डिग्री / 7.2 डिग्री = धरती की परिधि / 5000 स्टेडिया
धरती की परिधि = 50 X 5000
धरती की परिधि = 2,50,000 स्टेडिया
एराटोस्ठेनिस ने धरती के आकार का मान 2,50,000 स्टेडिया निकाला| अगर आज के हिसाब से इसे देखा जाये तो,
2,50,000 X 157 मीटर = 3925०००० मीटर यानि 39,250 किलोमीटर
यह मान आज के आधुनिक तकनीक से नापे गए मान के लगभग बराबर था|
सिर्फ एक छड़ी की सहायता से सूरज की किरणों का कोण नापकर एराटोस्ठेनिस ने पूरी धरती का आकार नाप लिया था| जो उस समय पृथ्वी को मुठ्ठी में कर लेने के बराबर ही था| आज भी ज्यामिति और एक छड़ी की मदद से हम पृथ्वी के आकार को नाप सकते है|
एराटोस्ठेनिस के समय की दुनिया का मानचित्र |
एराटोस्ठेनिस में कई हुनर थे| उन्हें कई विषयों में महारथ हासिल थी जैसे भूगोल, खगोल-विज्ञान, गणित, साहित्य, काव्य और इतिहास| उनके द्वारा कहा गया सारा काम अतीत में कही गुम हो गया| एराटोस्ठेनिस के काम की जानकारी हमे दुसरे दार्शनिकों से मिलती है, जैसे क्लेओमेडस, प्लीनी, स्ट्राबो और टोलेमी|
धरती का आकार
उस जमाने में लोग जानते थे कि हमारी धरती का आकार एक गोले जैसा है| इस निष्कर्ष पर लोग कई अवलोकनों के आधार से पहुंचे थे| जैसे उस वक़्त समुद्री यात्राओं पर जानेवाले जहाज दूर समुद्र में जाते तो किनारे पर से दिखता था कि धीरे धीरे जहाज का निचला हिस्सा डूब रहा है| फिर ध्वजस्तम्भ डूबता दिखता और फिर बाद में उस पर लगी ध्वजा भी डूबती दिखती| लोगो को लगता की जहाज डूब गया है| लेकिन कुछ दिनों बाद वही जहाज किनारे लौट आता| यह इसीलिए संभव है जब धरती गोल है और इसी वजह से जहाज धीरे धीरे दृष्टिक्षेप से ओझल हो जाता| दुसरे अवलोकन मे चन्द्रग्रहण के वक़्त जब धरती सूरज और चन्द्रमा के बीच आ जाती तब चन्द्रमा पर धरती की गोल परछाई दिखाई देती थी| लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था की धरती का गोला कितना बड़ा होगा| इसे नापने की कोशिशे तो बहुत लोगो ने की पर किसी को सफलता नहीं मिली| उस वक़्त तक ज्यमिती विषय पर लोगो की समझ बन गयी थी| इसी ज्यामिति का उपयोग कर एराटोस्ठेनिस ने धरती का आकार नाप लिया|
एराटोस्ठेनिस काम के सिलसिले में अलग अलग शहर यात्रायें करते थे| ऐसे ही एक दिन वह अलेक्झांड्रिया के दक्षिण स्थित सायन (Syene) शहर में थे| दोपहर के वक़्त उन्होंने देखा की एक कुँए में सूरज की रोशनी सीधे कुँए के तल तक पहुंची हुई थी| सायन में उस दिन सूरज सीधा माथे पर था और आसपास के चीजों कि छाया भी सीधे निचे बन रही थी| (सायन शहर जो आज आस्वान नाम से जाना जाता है, उसकी स्थिति कर्क रेखा पर है| हम जानते है कि 22 जून को सूर्य इस रेखा पर होता है|) फिर अगली बार उसी दिन जब अलेक्झांड्रिया में थे, उन्होंने देखा की सूरज माथे पर होने के बावजूद चीजों की छाया पड रही थी| उन्होंने सोचा कि सायन में इसी दिन चीजों की छाया सीधे निचे बनती है, लेकिन यहाँ पर तो ऐसा नहीं हो रहा है| मतलब सूरज से आने वाली किरणों का कुछ कोण बन रहा है| यह तभी मुमकिन होगा जब धरती गोल होगी| अगर सूरज की किरणों का कोण मापा जाये तो पृथ्वी का आकार भी पता किया जा सकता है|
एक ही दिन सायन और अलेक्झांड्रिया में पड़नेवाली किरणों का कोण अलग बनता है| |
आकृति 1 |
360 डिग्री / 7.2 डिग्री = धरती की परिधि / अलेक्झांड्रिया और सायन की दुरी
360 डिग्री / 7.2 डिग्री = धरती की परिधि / 5000 स्टेडिया
धरती की परिधि = 50 X 5000
धरती की परिधि = 2,50,000 स्टेडिया
एराटोस्ठेनिस ने धरती के आकार का मान 2,50,000 स्टेडिया निकाला| अगर आज के हिसाब से इसे देखा जाये तो,
2,50,000 X 157 मीटर = 3925०००० मीटर यानि 39,250 किलोमीटर
यह मान आज के आधुनिक तकनीक से नापे गए मान के लगभग बराबर था|
सिर्फ एक छड़ी की सहायता से सूरज की किरणों का कोण नापकर एराटोस्ठेनिस ने पूरी धरती का आकार नाप लिया था| जो उस समय पृथ्वी को मुठ्ठी में कर लेने के बराबर ही था| आज भी ज्यामिति और एक छड़ी की मदद से हम पृथ्वी के आकार को नाप सकते है|
एराटोस्ठेनिस (276 ईसा पूर्व- 194 ईसा पूर्व) |