Friday, August 3, 2018

कैसे समझे चन्द्रमा की कलाओं को?


स्कूली विज्ञान में केमिस्ट्री, फिजिक्स और बायोलॉजी विषयों को शिक्षक काफी आसानी से पढ़ा सकते है| लेकिन स्कूली विज्ञान में अगर कोई विषय अक्सर छुट जाता है तो वह है एस्ट्रोनॉमी या खगोल विज्ञान| खगोल विज्ञान की कई अवधारणायें (concepts)सामान्यता उतनी गंभीरता से नहीं पढ़ी जाती| कई तरह की खगोलीय अवधारणाओं को लेकर शिक्षकों के मन में भी सवाल होते है| उसमे से एक है चन्द्रमा की कलाएं| शिक्षक मुझे अक्सर सवाल पूछते है की चन्द्रमा के घटते बढ़ते आकार को कैसे समझाया जाये| चन्द्रमा की कलाओं समझ पाना उतना आसान नहीं होता| अगर किसी से यह सवाल भी पूछा जाये तो उसका जवाब ज्यादातर बार होता है की धरती की छाया चन्द्रमा पर गिरती है और वह हिस्सा ढक जाता है और हम कलाएं देख पाते है| यह कंफ्यूजन इसलिए भी होता है क्यूंकि ज्यादा तर बार ग्रहण के वक़्त यह कहा जाता है की हम शुरुवात से अंत तक चन्द्रमा की कलाएं ग्रहण में देख सकते है| लेकिन ग्रहण में चन्द्रमा की दशाएं और चन्द्र कलाएं इनमें काफी अंतर होता है| स्कूल में भी इनको समझ पाना उतना आसान नहीं होता| स्कूल की किताबों में चन्द्रमा की कलाओं को समझाने के लिए एक डायग्राम होती है जो समझ बढ़ने में शायद ही काम आती है| यह डायग्राम यह कहती है की धरती चन्द्रमा और सूरज के बिच के कोण बदलने की वजह से चंद्रमा की कलाएं दिखती है|

स्कूली किताबों में छपी जानेवाली डायग्राम, सोर्स internet


इसी डायग्राम को दूसरी तरह से समझने के लिए मॉडल बनाया जाता है| जिस में एक बल्ब और दो गेंदों की मदद से सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा के बिच में बदलने वाले कोण को समझा जाता है| पर जब तक चन्द्रमा धरती के इर्दगिर्द घूमता कैसे है और अंतरिक्ष में उसकी जगह कैसे बदलती है, इसे समझा नहीं जाता तब तक कोई भी मॉडल या आकृति, चन्द्र कलाएं समझा पाने में शायद ही सफल हो|  अगर चन्द्र कलाओं को समझना है तो सबसे आसान तरीका है की हर रोज का चन्द्रमा देखना| और सूर्य के साथ जोड़ कर इसे देखा जाये तो इसका एक चित्र उभर पाने में मदद मिल सकेगी|

इस सन्दर्भ मे मैंने कुछ स्कूलों में बच्चों के साथ इस काम को कर के देखा था| इस काम मे मैंने अवलोकन (osbervation)का तरीका इस्तेमाल किया था| इसके लिए थोडा लम्बा समय याने लगभग डेढ़ हफ्ते तक बच्चे चन्द्रमा के अवलोकन ले कर उन्हें दर्ज करते रहे थे| इन अवलोकनों में उन्हें चन्द्रमा की आकाश में स्तिथि साथ मे सूर्य से उसकी दुरी को भी देखना था| यह अवलोकन उन बच्चों ने शुक्ल पक्ष में किये थे, जिसमें चन्द्रमा का आकार बढ़ते जाता है| उन्हें इन अवलोकनों को दर्ज करने के लिए मैंने एक अवलोकन तालिका (ऑब्जरवेशन टेबल) दि थी| बच्चों ने काफी अच्छे अवलोकन किये थे| चन्द्रमा का हर दिन का आकार, उसकी आकाश में स्थिती और सूर्य से दुरी के अवलोकन थे| फिर एक शाम मैंने बच्चों के हर दिन के अवलोकनों को जोड़ते हुए बात करी की कैसे चन्द्रमा का आकार बढ़ता जाता है और साथ में उसकी दुरी भी सूर्य से आकाश में बढती जाती है| हर दिन चन्द्रमा सूर्य से दूर आकाश में पूर्व दिशा की ओर बढ़ता है| यहाँ उन्हें चाँद की दो गतियाँ पता चली थी| पहली पृथ्वी के घूर्णन की वजह से आकाश में पूर्व से पश्चिम और दूसरी चन्द्रमा खुद की कक्षा में होने वाली गति जो थी पश्चिम से पूर्व|

चाँद पर सूरज की रोशनी गिरती रहती है और इसी वजह से उस पर भी दिन रात होते है| चाँद के चमकीले हिस्से पर दिन होता है और जो हिस्सा अँधेरा होता है वह रात होती है| चाँद अपनी कक्षा में आगे बढ़ता है वैसे चाँद पृथ्वी और सूर्य के बीच बदलते कोण की वजह से उसका चमकीला भाग हमे कम ज्यादा मात्रा में दिखता है| हमारे पास चाँद के शुक्ल पक्ष के सप्तमी से लेकर कृष्ण पक्ष की द्वितीया तक के अवलोकन थे| लगभग ठीक ठाक डाटा था चाँद की कलाओं को समझने के लिए | चन्द्रमा के घटते बढ़ाते आकार को समझाने के किये मैंने एक सिम्युलेटर सॉफ्टवेर का उपयोग किया था |

चन्द्रमा की कलाएं,  source wikipedia


चाँद हमारी धरती के चक्कर पृथ्वी के इर्दगिर्द काटता है| उसके इस मार्ग को हम कक्षा कहते है| इसे धरती का एक चक्कर पूरा करने में लगभग एक महीना लग जाता है| अगर हम हमारे अवलोकन में पहले चाँद की स्थिति को देखे तो उसकी कक्षा में लगभग 3 क्रमांक की स्थिति पर था| तो आकाश में अर्धगोल के आकार का दिख रहा था और एक खास समय विशिष्ट तारो के साथ दिखाई दे रहा था| पर जैसे उसकी स्थिति उसकी कक्षा में बदलती है तो आकाश में हमे वो दुसरे तारो के साथ दिखाई देने लगता है| साथ ही में उसके आकाश में आने का समय भी बदल जाता है| चित्र में हम देख पाएंगे की चाँद का सूरज के तरफ का हिस्सा चमकीला है वह दिन है| क्रमांक 3 की स्थिती में हमे उसके आधे चमकते और आधे अँधेरे हिस्से को देख पा रहे है| जैसे 4 क्रमांक की स्थिति पर जाता है , तब हमे उसका चमकीला हिस्सा ज्यादा दिखाई देता है| जब वह 5 क्रमांक की स्थिति पर आता है, तब हम उसका पूरा चमकीला हिस्सा देख पाते है जो हमे आकाश में पूरा गोल दिखाई देता है| यह पूर्णिमा की स्थिति है|

चन्द्रमा की कक्षा में आगे बढाती हुयी स्थिती और दिखनेवाली चन्द्र कलाएं, source form Wikipedia images 
अब पूर्णिमा के बाद चाँद थोडा देरी से आसमान में आने लगता है| बच्चों ने इस चाँद को भी देखा था| अब ये चाँद तो सुबह सूर्योदय के वक़्त तक आसमान में दिखाई देता है, फिर इसका अस्त होता है| आगे आने वाले कुछ दिनों में चाँद का आकार और छोटा होता जाता है और उसका अस्त हम दिन में ही देख पाते है और सूर्य और चाँद के बीच की दुरी और कम होती जाती है और जब चाँद अपनी कक्षा में 9 क्रमांक की स्थिति पर होगा तब आकाश में सूरज के पास होगा और इसे देखना मुश्किल हो जायेगा| उस दिन रात में चाँद नहीं दिखेगा और वह होगी अमावस| यह चक्र ऐसाही चलता रहता है|

जब मैं इन कलाओं के बारे में बातचीत आर रहा था तब बच्चे अपने अवलोकनों के साथ इसे जोड़ कर देख रहा थे| उनके अवलोकनों ने उन्हें चन्द्रमा की कलाओं के बारे में समझने मे मदद करी|

विज्ञान में अक्सर यही किया जाता है की वैज्ञानिक उनके अवलोकनों के आधार पर एक चित्र खड़ा करते है जिन्हें मॉडल कहा जाता है| यह मॉडल हमें उस घटना के तथ्यों के पास ले कर जाता है| ऐसे कई मॉडल्स विज्ञान में बनाये जाते है| यह मॉडल्स अवलोकनों के आधार पर खड़े होते है| लेकिन जरुरी नहीं की यह मॉडल्स हर एक व्यक्ति को उस घटना को समझा पाने में या कल्पना करने में मदद करे| और स्कूल के किताबों में अक्सर यही किया जाता है की विज्ञान को ऐसे मॉडल्स के जरिये पढाया या समझाया जाता है| जब की होना ये चाहिए की बच्चों के अवलोकनों के आधार पर मॉडल बनाये जाये| जो की विज्ञान की अवधारणाओं (concepts) को मजबूत करने में मदद करे| चन्द्रमा की कलाएं भी ऐसे ही एक मॉडल का उदाहरण है, जिसे सिर्फ मॉडल से नहीं बल्कि अवलोकनों से समझ सकते है|

13 comments:

  1. एक उम्दा लेख के लिए धन्यवाद। निश्चय ही यह चंद्र कलाओं की समझ बनाने में सहायक होगा। सभी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को भेज रहा हूँ।

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  2. बिना अवलोकनों पर विस्तार से बात किये,हम मान लेते हैं कि इतना तो सब ने देखा ही होगा और अक्सर हम मॉडल की मदद से समझाने या बच्चों से मॉडल बनवाने की जल्दबाजी कर जाते हैं। विज्ञान की कक्षा में इतना धैर्य होना सीखने के लिए कितना जरूरी है, यह आपके अनुभव से स्पष्ट होता है। अच्छा लेख।

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    2. धन्यवाद अम्बिका जी, यह तो है की विज्ञान विषय में बच्चो के साथ काम करते वक्त धैर्य तो रखना पड़ेगा| और विज्ञान को उसी के तौर तरीकों से समझे तो ज्यादा बेहतर होता है|

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  3. बेहतर आलेख अमोल जी क्योंकि अक्सर इन अध्यायों को सब रोज देखते ही हैं आकाश में मानकर अतिसरलीकरण के साथ पढ़ा दिया जाता हैं नतीजा बच्चे महरूम रह जाते है विज्ञान की खूबसूरती को अवलोकन करने से और समझने सेल

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  4. बेहतर आलेख अमोल जी क्योंकि अक्सर इन अध्यायों को सब रोज देखते ही हैं आकाश में मानकर अतिसरलीकरण के साथ पढ़ा दिया जाता हैं नतीजा बच्चे महरूम रह जाते है विज्ञान की खूबसूरती को अवलोकन करने से और समझने सेल

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  5. चन्द्रमा की कलाओं की समझ विकसित करने के लिए बहुत ही सरल और स्पष्ट माडल है धन्यवाद गुरुजी

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  6. Thnx sir ji and aashish bro....mene ye aapke sath sirohi apf trainig me kiya tha....

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