Thursday, May 14, 2020

गुलाम- स्पार्टाकस से ओबामा तक, वर्णद्वेषी गुलामी का अमानुष सफ़र


किताब का परिचय

गुलाम यह किताब मैंने सालभर पहले मंगवाई थी. लेकिन उसे पढने का मौका पिछले हफ्ते मिला. अच्युत गोडबोले और अतुल कहाते इन दो मराठी लेखकों ने इसे मिलकर लिखा है. अच्युत गोडबोले की गणिती, किमयागार और कैनवास यह किताबें में पहले पढ़ी है. एक ख़ास विषय के साथ व्यक्तिओं की पहचान वे अच्छी तरह कर देते है और साथ में ही इतिहास की झलक भी दिखा देते है. अतुल कहाते भी मराठी में विज्ञान विषय के साथ साथ सामाजिक विषयों पर लिखते रहते है. दोनों ने मिलकर गुलामों की कहानी इस किताब में लिखी है.

गुलामी मानवी सभ्यता को नयी नहीं है. जब से मानवी सभ्यताओं का उदय होना शुरू हुआ तब से ही गुलामी का जन्म हुआ. शिकारी जीवन को छोड़कर मनुष्यों ने एक जगह बसकर नयी सभ्यताओं की शुरुवात की. तभी से सम्पत्ति का बटवारा समाज के विभिन्न वर्गों में समान नहीं था. कुछ धनिक लोगो ने कमजोर वर्गो के लोगो को जबरन पकड़ कर उन्हें गुलाम बनाने की प्रथा शुरू की. शुरुवाती सभ्यताओं से ही यह परंपरा कायम रही. ग्रीस और रोम जैसे साम्राज्य भी गुलामों के श्रम पर संपन्न हुए. रोम और ग्रीस के लोगों को सुखी जीवन जीने के लिए गुलाम रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था. उसके पीछे गुलामों का व्यापर बढे यह भी हेतु होता था.

गुलामों से हर तरह के काम करवाए जाते थे. घर के काम, खेती के काम साथ में ही उन्हें मालिक का मनोरंजन भी करना पड़ता था. यहाँ मनोरंजन मालिक की शारीरिक भूख मिटने से लेकर ग्लाडीएटर जैसे खुनी खेल खेलने तक होता था. मालिकों के इस अत्याचार का बदला कभी कभी कोई गुलाम ले ही लेता कभी भागकर तो कभी मालिक का खून कर के. ऐसे मामलों में अगर गुलाम पकड़ा जाता तो उसकी कोई खैर नहीं होती. उसे टॉर्चर कर के मारा जाता. गुलामों के नियम बहोत ज्यादा जुलमी होते थे. गुलामों का जन्म सिर्फ गुलामी के लिए हुआ है यही उन्हें बर्बर बताया जाता ताकि वोह कभी कुछ और न सोच सके. सुकरात और अरस्तु साथ साथ सभी दार्शनिक भी गुलामी का समर्थन करते थे. रोम साम्राज्य में एक वक्त तो गुलामों की संख्या कुल लोकसंख्या के 40% थी.

ईसापूर्व पहली सदी में गुलामों ने एक क्रांति को जन्म दिया. इस क्रांति का नायक था स्पार्टाकस. स्पार्टाकस पहले एक खदान पर गुलामी करता था. स्पार्टाकस को बचपन में एक व्यक्ति ने पथ्थर पर पढ़ना सिखया था. उसने स्पार्टाकस से कहा था ‘ स्पार्टाकस, ज्ञान एक हथियार है. ज्ञान के बिना हम जानवर है. बहोत पहले कोई गुलाम नहीं था. ऐसा समय फिर आएगा.’ शायद इसी वजह से स्पार्टाकस आजादी के सपने देखा करता था. बतियातुस नाम के गुलामों के व्यापारी ने उसे ग्लाडीएटर खेल के लिया ख़रीदा था. उसे लड़ने का प्रशिक्षण दिया. बतियातुस लड़ाकू गुलामों का अच्छा ध्यान रखता था. पर थी तो वह गुलामी ही. स्पार्टाकस ने सभी गुलामों को इकठ्ठा किया और जुल्मी रोमन साम्राज्य के खिलाफ जंग छेड़ दी. रोमन साम्राज्य ने गुलामों की लड़ाई को बहोत हलके में लिया था. गुलामों ने महान रोमन साम्राज्य की सेना को पांच बड़ी लड़ाई में शिकस्त दी. आखरी लड़ाई ने रोमन सेना ने पूरा जोर लगाकर स्पार्टाकस की सेना को हराया. स्पार्टाकस भी मारा गया. पर स्पार्टाकस ने आनेवाली कई गुलामों की पीढ़ियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी.

रोम साम्राज्य के अंत के बाद भी गुलामी जिन्दा रही. इसे कायम रखा अलग अलग धर्मों ने. ख्रिस्ती धर्म ने शुरुआत में तो गुलामी को खुला समर्थन नहीं दिया था पर उसने उसके खिलाफ कुछ कहा भी नहीं. ख्रिस्ती धर्मने गुलामी को हमारे पापों को ख़त्म करने का जरिया बताया. इससे उन्होंने तो अच्छा व्यापार भी बनाया. चर्च के पास कई गुलाम हुआ करते थे. इस्लाम में भी गुलामों को लेकर काफी कुछ कहा गया है. मुहम्मद और उसके साथी कई गुलाम खरीदते थे उन्हें बेचते भी थे और मुक्त भी करते थे. महम्मद ने 63 गुलामों को मुक्त किया था. इस्लाम में मानना था की एक मुक्त मुस्लिम व्यक्ति और गुलाम मुस्लिम व्यक्ति, किसी मुक्त गैर मुस्लिम व्यक्ति से महान है. इस्लामिक कायदे के मुताबिक किसी मुक्त मुस्लिम को गुलाम बनाया जा सकता था. लेकिन, किसी गुलाम ने अगर इस्लाम काबुल किया तो उसके लिए वह गुलामी से मुक्त होने का जरिया नहीं हो सकता था. आठवी सदी से उन्नीसवी सदी तक कई मुस्लिम शासकों ने कई यूरोपियन लोगो को गुलाम बनाया था.

भारत में भी गुलामी की जड़े वेद काल से मिलती है. पर यहाँ पर रोम की तरह गुलामों के बाज़ार नहीं लगते थे. यहाँ पर की गलामी का स्वरुप थोडा भिन्न रहा हो ऐसा मन जाता अहै. लेकिन भारत में जातिव्यवस्था जबसे ज्यादा अत्याचारी थी. यहाँ पर गुलाम की जिंदगी किसी निचले जाती के इन्सान से कई ज्यादा  आसान थी. निचले जाती के लोगों को अपने जीवन आवश्यक जरुरतो को पूरा करना भी मुश्किल था.

जब यूरोपियन उपनिवेश शुरू हुए तब यूरोपियन देशों ने गुलामो के व्यापर को तेज किया. इसमें सबसे ज्यादा अफ्रीका के लोगो को गुलाम बनाया गया और उन्हें दुनियाभर के उपनिवेशों में भेजा गया. अमेरिका में गुलामों की सबसे ज्यादा मांग रही. अमेरिकाने जीतनी बुरी तरह गुलामो के साथ व्यवहार किया वह शायद ही इतिहास में किसी देश ने किया हो. गुलामी ने अब काले लोगो का रंग ले लिया था. अमेरिका के साथ साथ दुसरे उपनिवेशों में काले लोग यानि कम बुद्धिवाले इन्सान जो गुलामी के लिए बने होते है, यही समीकरण बनाया गया. काले वर्ण के लोगों को अफ्रीका से डच, पोर्तुगीज, फ्रेंच, जर्मन और अंग्रेज़ अपने उपनिवेशों में ले जाते थे. गुलामों के व्यापर के कोई कायदे नही होते थे. गुलामों के लिए तो कायदे थे ही नहीं. उनका दोहन किसी भी तरह से किया जा सकता था.

अंग्रेजो ने सबसे पहले गुलामी के खिलाफ कुछ कायदे बनाये. अमेरिका में जहाँ जहाँ अंग्रेज़ उपनिवेश थे वहा गुलामी कुछ कम थी. अमेरिका के स्वतंत्रता के बाद वह पर के राज्यों को गुलाम रखने के कायदे बनाने की सहूलियत थी. उत्तर के राज्यों में जहा पहले अंग्रेजी उपनिवेश थे वहा गुलामी कम थी लेकिन दक्षिणी राज्यों में गुलामी बहोत ज्यादा थी. दक्षिणी राज्यों का सारा व्यापार गुलामों की मेहनत पर निर्भर था. अमेरिका में काले गुलामों के लिए कुछ जन आन्दोलन शुरू हुए. फिर धीरे धीरे यह आन्दोलन ने युद्ध का स्वरुप ले लिया. अब्राहम लिंकन पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने अमेरिका में गुलामी के खिलाफ लड़ाई छेड़ी. लेकिन लड़ाई ख़त्म होने से पहले लिंकन को मारा गया. अमेरिका के यादवी युद्ध के बाद गुलामी को ख़त्म किया गया पर काले लोगो को इंसानों को इंसान का दर्जा नहीं दिया गया.

काले लोगो को न शिक्षा का अधिकार था, न अच्छी नौकरी करने, न वोट देने का. उन्हें हर वह चीज देने से मना किया गया जो उन्हें इन्सान होने का दर्जा दे सकती थी. ऐसाही कुछ दक्षिण अफ्रीका के स्थानीय लोगो के साथ गोरे लोगो ने किया. अमेरिका ने अपने दोस्त दक्षिण अफ्रीका का भी काले का दोहन करने में बहोत साथ दिया. अमेरिका में करीब सौ सवासो साल लगे काले लोगो को सार्वजनिक समानता मिलने के लिए. लगभग उतने ही दक्षिण अफ्रीका के काले लोगो को भी लगे. अपने संघर्ष के दौरान काले लोगो को काफी खून खराबे का भी सामना करना पड़ा. अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग और अफ्रीका में नेल्सन मंडेला जैसे गांधीवादी नेताओं के नेतृत्व में लोगो ने अहिंसापूर्ण आन्दोलन किया. पहले अफ्रीका में मंडेला काले वर्ण के राष्ट्रपति बने फिर अमेरिका में भी ओबामा राष्ट्रपति बने. अलग अलग क्षेत्रों में काले वर्ण के लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान देकर अपनी काबिलियत साबित की और दिखा दिया की वोह किसी और इंसानों से अलग नहीं है.

इस किताब में गुलामों एक पूरा इतिहास बताने की कोशिश की गयी है. गुलामी इस दुनिया और समाज को काफी प्रभावित किया. इतिहास में गुलाम का रूप काफी बार बदला गया कभी ये गरीब थे कभी ये युद्ध बंदी थे तो कभी काले लोग. दुनिया में आज गुलामी करवाना अपराध माना जाता है. पर दुनिया आज भी गुलामी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुयी है. दुनिया में आज भी अलग अलग रूप में गुलामी मौजूद है. इसकी सबसे ज्यादा मार स्त्रियाँ और छोटे बच्चे झेलते है. गुलामी की संघर्ष कहानी बतानेवाली यह किताब पढ़ने लायक है.

किताब का नाम : गुलाम - स्पार्टाकस ते ओबामा, वर्णद्वेषी गुलामगिरिचा अमानुष प्रवास (गुलाम- स्पार्टाकस से ओबामा, वर्णद्वेषी गुलामी का अमानुष सफ़र)
लेखक : अच्युत गोडबोले , अतुल कहाते
पब्लिशर: मनोविकास प्रकाशन



7 comments:

  1. स्पष्ट, प्रभावशाली भाषा के साथ एक विचारणीय बिन्दु पर बहुत ही अच्छे विचारों का प्रस्तुतीकरण किया है यह प्रयास काबिले तारीफ है

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  2. स्पष्ट, प्रभावशाली भाषा के साथ एक विचारणीय बिन्दु पर बहुत ही अच्छे विचारों का प्रस्तुतीकरण किया है यह प्रयास काबिले तारीफ है

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  3. बहुत खुब बया किया इतिहास के पन्नों को और आज से उसकी तुलना को l

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  4. Good to know about this Book on Gulami in details through your eyes. Your review inspires us to read this book, I must have read if I knew Marathi.

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  5. इस पुस्तक को माध्यम बनाकर संसार में गुलामी की प्रथा के भयानक रूप से वर्तमान की अदृश्य गुलामी तक के सफर को आपने सरल शब्दों में प्रस्तुत किया जो प्रभावित करता है साथ ही अंत में आपने आज स्त्रियों एवं बच्चों पर थोपी गई अदृश्य गुलामी की ओर इशारा भी किया है जो सोचने पर मजबूर करता है

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