“गज़ब!!!”
“जबरदस्त!!!”
“वाऊ, फैंटास्टिक!!!”
जब चन्द्रमा सूरज के बिल्कुल सामने आ गया और रिंग ऑफ़ फायर
नुमा नज़ारा बन गया तब यही अल्फाज़ हमारे मुंह से निकले| वलयाकार सूर्यग्रहण का ऐसा नज़ारा देखकर हम सभी रोमांचित हो गए थे| ऐसा नहीं
है कि मैंने पहले कभी वलयाकार ग्रहण नहीं देखा है| पहले भी ऐसा ग्रहण मैंने देखा
है, लेकिन इस बार जो देखा वह कमाल का था| 21 जून 2020 का वलयाकार
सूर्यग्रहण भारत से बहुत कम हिस्से से देखा गया| अफ्रीका से शुरू होकर सऊदी अरब और
दक्षिण पाकिस्तान से गुजरनेवाली चन्द्रमा की छाया भारत के उत्तरी राजस्थान,
हरियाणा और उत्तराखंड से गुजरी| आगे यह छाया तिब्बत, चीन से होकर प्रशांत महासागर
में खत्म हुयी|
21 जून 2020 का वलयाकार सूर्य ग्रहण |
इस साल का यह पहला सूर्य ग्रहण था और काफी ख़ास भी| वह इसलिए
भी क्यूंकि इस दशक में भारत से दो वलयाकार ग्रहण दिखे और यह आखिरी था| अब भारत से
अगला वलयाकार सूर्यग्रहण 21 मई 2031 में यानी ग्यारह साल बाद दिखेगा| दूसरे यह
ग्रहण इसलिए भी ख़ास था क्यूंकि यह ऐसे समय हो रहा था जब पूरी दुनिया के साथ साथ
भारत में भी कोरोना महामारी फैली थी| वैसे तो सूर्यग्रहण के नज़ारे देखने के लिए
दुनियाभर से लोग उन जगहों पर पहुँचते हैं जहां से सुर्यग्रहण दिखानेवाला हो| लेकिन
इस साल दुनिया थम सी गयी थी| एक्का-दुक्का लोग ही उन जगहों पर पहुँच पायें जहां से
इसे देखा जाना था|
आकाशमित्र के साथ मैंने भी इसे देखने की तैयारियां छह महीने
पहले शुरू कर दी थी| टिकट बुकिंग, प्लान, कहाँ जाना है, कब जाना है, सब कुछ| पर मार्च महीने के आते-आते भारत में कोरोना महामारी ने पैर पसारना शुरू कर
दिए और भारत में भी लॉकडाउन के ताले लग गए, ताकि इस बीमारी को फ़ैलाने से रोका जाए|
हमे फिर भी उम्मीद थी कि कुछ दिन बाद शायद बीमारी रुक जाए तो हमे सूर्यग्रहण देखने
का मौका मिल जायेगा| लेकिन जैसे जैसे वक़्त बीतता गया यह महामारी बढती ही गयी और
हमारी ग्रहण देखने की उम्मीदे कम हो गयी| मार्च, अप्रैल मई पुरे देश में
आवाजाही बंद रही| दुनिया के हालत बद से बदतर हो रहे थे| लेकिन जून में देश की कई
राज्य सरकारों ने लॉकडाउन को अनलॉक किया और आवाजाही शुरू हो गयी|
ग्रहण देखने की थोड़ी उम्मीद तो बढ़ी लेकिन फैलती बीमारी से
हिम्मत तो नहीं बढ़ रही थी| कोशिशें फिर भी जारी थीं| हालांकि अब हमारी ग्रहण देखने
की जगह बदल गयी थी| आकाशमित्र के दो साथी मनोज जी और शिशिर लगातार मेरे संपर्क में
थे| प्रयास था कि राजस्थान के किसी इलाके से इसे देखा जाये| मैं भी जगह ढूंढ रहा
था| राजस्थान के सूरतगढ़ के मेरे दोस्त गौरव से बातचीत हुई क्यूंकि जिस इलाके से
ग्रहण गुजरने वाला था उसमे सूरतगढ़ भी शामिल था| लेकिन पल पल बदलती परिस्थितियां
किसी भी प्लान को टिकने नहीं दे रही थी| एक दिन कुछ स्थानीय सरकारी अधिकारियों से बातचीत
कर रहे थे तो उन्होंने राजस्थान सरकार के राज्य की सीमा को बंद करने के आदेश
दिखाए| उम्मीद पर एक बार पुनः पानी फिर गया| मनोज जी से बात हुयी उन्होंने कहा कि
हम नहीं आ पाए तो तुम जरुर चले जाना|
एक दिन बाद स्थानीय सरकारी अधिकारी ने मेसेज भेजा कि सरकार
ने राज्य सीमाएं फिर से खोल दी है और बाहर से आनेवाले किसी को अब नहीं रोका जायेगा|
अब शिशिर और मनोज जी को मैंने कहा कि वे आ सकते हैं|
सूरतगढ़ राजस्थान का एकमात्र शहर था जो सभी तरह के लॉकडाउन
में ग्रीन ज़ोन बना रहा था| लेकिन आगे की परिस्थितियां हम भी नहीं जानते थे| सूरतगढ़
के दोस्त के साथ मिलकर कुछ व्यवस्थाएं बनायीं| शुक्रवार की सुबह से दोपहर तक हमारा
प्लान बिगड़ते बिगड़ते वापस पटरी पर आया| शिशिर और मनोज जी पुलिस और मेडिकल
क्लीयरन्स लिया और चल पड़े| रात का सफर तय कर के उन्हें सुबह सिरोही पहुँचे|
फिर हम तीनों निकल पड़े सूरतगढ़ की ओर| दिन भर की गर्मी में
की गयी यात्रा काफी थकान भरी रही| हमने उस रात होटल में रहने का फैसला किया| वैसे
साथ में टेंट भी था लेकिन सूरतगढ़ की गर्मी के सामने हमारी टेंट में रहने की हिम्मत
नहीं बनी| हालांकि मन में दुविधा भी थी लेकिन थकान और गर्मी के सामने दुविधा कमजोर
पड गयी| मेरे मित्र का भाई सौरव हमसे मिलने आया था| हम भी सोच रहे थे कि कहाँ से
ग्रहण को देखे| हम यह नहीं चाहते थे कि किसी के संपर्क में आये, तो कोई ऐसे जगह की
पूछताछ हमने उससे की| उसने कहा कि भाईसा, ग्रहण के दिन कोई बाहर नहीं निकलेगा तो
भीड़ की चिंता तो आप छोड़ दीजिये लेकिन यहाँ आसपास तो सिर्फ रेत के टिब्बे हैं| इस
समय भरी गर्मी में रेत के टिब्बों पर से ग्रहण देखना मुश्किल है और आपको आसपास कोई
छांव भी नहीं मिलेगी| बेहतर होगा कि आप होटल की छत से ही देख लो| यह उपाय भी ठीक
था हमे पसंद भी आया क्योंकि आते वक्त की गर्मी हम झेल चुके थे| तय हुआ कल का ग्रहण होटल की छत से देखा जाये|
सुबह तड़के ही हम उठ गए ऊपर छत पर गए तो देखा की आसमान में
बादल ही बादल फैले हैं और शहर के आसमान पर
धुल की चादर भी थी| शायद रात को रेत की आंधी आई हो| मन में विचार आया कि इतनी दूर
आ कर क्या ग्रहण देख पाएंगे? शिशिर ने झट से मौसम विभाग की साईट देखी तो सॅटॅलाइट
इमेज में काफी दूर तक बादल दिख रहे थे| लेकिन हवा भी चल रही थी| घंटे भर में बादल
हटना शुरू हुए| हमने भी तैयारी शरू कर दी| सुबह 10 बजे के करीब हम छत पर पहुँच गए|
आसमान एकदम साफ़ हो गया था|
करीब 10 बज कर 15 मिनट पर चन्द्रमा ने सूर्य के पश्चिमी
किनारे को छुआ| ऐसे लगा कि सूरज की सुनहरी थाली का एक टुकड़ा टूट हो गया हो| धीरे धीरे चन्द्रमा सूर्य को ढंकने लगा| सूरज की रोशनी में गिरावट लगातार दिख
रही थी| इस दरमियान कुछ पत्रकारों को खबर लग गयी थी कि
कुछ लोग सूर्यग्रहण देखने सूरतगढ़ आये हैं| वे हमसे आकर मिले| लेकिन अन्दर से हमे
लग रहा था कि शायद हमे इनसे बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम बहुत दूर से ऐसे
महामारी के समय आये हैं| हम नहीं चाहते थे कि किसी भी तरह के संक्रमण की वजह या तो
हम या तो वे लोग बने| पर ग्रहण जैसी घटना को उन लोगों तक पहुँचाना भी जरुरी लगा जो
घरों में छिपे बैठे थे| ऐसे में उनसे भी उचित दूरी बनाकर बातचीत की| उन्होंने भी
ग्रहण के चश्मों से ग्रहण देखा| अंधविश्वास पर भी उनसे बात हुयी| भरे ग्रहण में सब
ने पानी भी पिया|
सूर्य के सामने आता हुआ चन्द्रमा |
पत्रकारों से बात करने के दौरान कुछ सवाल आये थे जैसे क्या
इस ग्रहण का कोरोना महामारी के साथ कोई सम्बन्ध है? 2020 साल बहोत बुरा रहा
क्या इस ग्रहण की वजह से और भी मुश्किलें बढ़ेंगी क्या? ग्रहण की छाया अशुभ होती है क्या? वैसे तो इस तरह के सवाल ग्रहण के दौरान काफी
पूछे जाते है| लेकिन जब इस पर बात होती है कि सूर्य और चन्द्रमा एक दुसरे के आमने
सामने आते हैं तो ग्रहण होता है इसका शुभ अशुभ से कोई नाता नहीं है| कई सारे लोग
इस बात में हाँ भी मिलाते हैं| यह भी मानते हैं कि सूर्य के सामने चन्द्रमा आता है
उसकी छाया पृथ्वी पर पड़ती है कोई शुभ अशुभ नहीं होता| लेकिन ग्रहण के वक्त यही लोग
घरों में छुपकर बैठते हैं और सभी तरह के धार्मिक कर्मकांड करते हैं|
अब तो 2020 साल को भी बुरे साल कि उपाधि मिल गयी है| कुछ
लोगों के अनुसार सभी तरह की बुरी घटनाये ये साल लाया और उसपर यह ग्रहण भी| इस तरह
की मान्यताएं पहले भी समाज रह चुकी है| ग्रहण दिखने या धूमकेतु दिखने पर किसी राजा
की मौत के होने या महामारियों का फैलने से जोड़ दिया जाता है| ग्रहण को ईश्वर का
प्रकोप या चेतावनी मानने वालों की संख्या कभी कम नहीं रही है| लेकिन विज्ञान की खोज़
से यह साफ हो चुका है कि मानव या मानवीय समाज में घटने वाली घटनाओं के पीछे किसी
भी खगोलीय पिंडो या घटनाओं की भूमिका नहीं होती| महामारियां सूक्ष्मजीवों से फैलती
है न की ग्रहण की वजह से और ना ही महामारियों को ग्रहण की वजह से फैलने में बल
मिलता है| यह तो प्राकृतिक घटनाएँ है|
रिंग ऑफ़ फायर के कुछ हिस्से चन्द्रमा के पहाड़ों की वजह से टूटे हुए दिख रहे है| |
अग्निवलय के बाद की स्तिथि |
जैसे जैसे ग्रहण की घडी समीप आने लगी वैसे हम और भी सतर्क
हो गए| सूर्य के सामने अब धीरे-धीरे चन्द्रमा आने लगा| चन्द्रमा का आकार सूर्य के
आकार से थोड़ा सा ही कम था| रोशनी में तेजी से गिरावट आ गयी| रोशनी एकदम तो बंद
नहीं हुयी लेकिन लगभग शाम जैसा माहौल हो गया| 11 बजकर 52 पर सूर्य के सामने चन्द्रमा
पूरी तरह आ गया| लेकिन चन्द्रमा जरा सा छोटा होने की वजह से सूर्य का जरा सा बाहरी
हिस्सा खुला रह गया और एक अग्नि-वलय बन गया| इस वलय की मोटाई पिछले वलयाकार सूर्य
ग्रहणों से काफी छोटी थी| चन्द्रमा के दक्षिणी हिस्से के ऊँचे पर्वतों की वजह से
इस वलय का कुछ हिस्सा टुटा हुआ सा लग रहा था| हमारे पास बस यही अल्फाज़ थे बेहद
शानदार और खुबसूरत| यही वह नज़ारा जिसने हमारी यात्रा को सफल बनाया| कुछ की सेकंड्स
में चन्द्रमा सूर्य के सामने से थोड़ा सा हट गया और अग्नि-वलय दिखना बंद हो गया| धीरे-धीरे
चन्द्रमा सूर्य के सामने से गुजरता हुआ पूर्व की ओर बढ़ रहा था| अब फिर से सूर्य की
रोशनी बढ़ रही थी और तापमान भी| 1 बज कर 50 मिनट पर चन्द्रमा सूर्य के सामने से
पूरी तरह से हट गया था| इतनी दूर आकर ग्रहण के समय चन्द्रमा के पहाड़ और अग्नि-वलय
देखना काफी मजेदार अनुभव था|
सूरतगढ़ की वीरान पड़ी सड़के |
तुरंत हम लोगों ने खाना खाकर सूरतगढ़ से विदाई ली| आज के दिन
सूरतगढ़ का माहौल काफी अलग था| कल के दिन जब सूरतगढ़ आये थे तब वहा काफी चहल-पहल थी,
मार्किट खुले थे, काफी लोग आम दिनों जैसे ही घूम रहे थे| लेकिन आज तो मार्किट की
एक भी दुकान खुली नहीं थी| सड़के भी वीरान पड़ी थी| ग्रहण के दिन में आज भी भारत में
यह आम बात है| यह भी बड़ी विडम्बना है कि आज कोरोना महामारी के समय हर एक व्यक्ति
इस बीमारी से इजात पाने के लिए विज्ञान की तरफ आस लगाकर बैठा है और एक तरफ वो
ग्रहणों को अशुभ मानकर घर में ईश्वर की पूजा में भी बैठा है| पढ़े लिखे समाज में आज
इस दुविधा को काफी आसानी से देखा जा सकता है|
खैर महामारी के ऐसे समय में देखा गया यह ग्रहण हमारे लिए हमेशा
यादगार रहेगा|
इस लेख मे किखी गयी प्लान की व्यथा का एक हिस्सा मैं भी था। बिलकुल ट्रैवल लॉग।
ReplyDeleteआखिरकार कोरोना काल में ये रोमांचक अनुभव आप लीग ले पाये। हमने तो अपने घर की छत से आंशिक ग्रहण ही देखा।
ReplyDeleteमित्र, आपकी भाषा शैली काफी आकर्षक हो गयी है।
ReplyDeleteशानदार!
ReplyDeleteपढ़कर ऐसी अनुभूति हो रही है जैसे पढ़ने वाला भी सफ़र का हिस्सा था।
एक आकर्षक तथ्य और है कि जिन लोगो को लॉकडाउन में घर बैठना भारी लग रहा था ओर कोरोना को लेकर वो सजग नही थे, वो ग्रहण की स्थिति में इसके डर से घर मे थे।
ReplyDeleteसूर्यग्रहण देखने की घटना को बहुत ही रुचिकर तरीके से वर्णित किया है। पढ़कर आनंद आया👍
ReplyDeleteVery interesting report...hats off to the efforts of akash mitras...
ReplyDeleteMast khup chan explain kartos
ReplyDeleteBeautifully written, i didn't know that people avoid going out during the eclipse. Since,I was traveling during the eclipse, seeing the roads empty which are otherwise full after the unlock was interesting for me.
ReplyDeleteAnother belief that I was aware of but observed for the first time was of people not having food. Even the people who teach science were on a fast and sat in the temples inside their homes chanting bhajan's the entire time.
अंधविश्वास की पैठ उन मस्तिष्क में गहरी होती है जहां पर परिवर्तन और तथ्यों का अभाव होता है। उम्मीद है जिन व्यक्तियों के संपर्क में आप आए, उन्हे आपने सूर्य ग्रहण से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य दिए ,उनमे से कुछ ने वह अविस्मरणीय नजारा देखा भी। उसके बाद सूर्य ग्रहण जैसी अद्भुत खगोलीय घटना को लेकर जो अंधविश्वास है उसका आधार जरूर कमजो़र हुआ होगा। ऐसे प्रयास समाज में बदलाव ला सकते हैं। आपका प्रयास सच में सराहनीय था और तमाम मुश्किलों के बावजूद भी आपने अप्रीतम घटना का दृश्य देखा उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteचूक गया मैं भी बना रहा था योजना सूरतगढ़ की। पर आप के लेख ने पूरी कर दी। जबर्दस्त!!
ReplyDeleteAmol sir ka blog nice...lgta hai jese hm bhi unke sath shrik the।
ReplyDeleteकौतुकाला शब्द अपुरे आहेत.अमोल शिशिर मनोज या तीन वीरांना सलाम
ReplyDeleteखूप छान माहिती.👌👌👍👍
ReplyDeleteYou are fortunate to view this beautiful event.
ReplyDeleteVery nice photographs. Viewing these photographs and reading your story, i feel that i am viewing it live.
Very beautiful!