Monday, December 7, 2020

21 दिसम्बर को आसमान में मिलेंगे बृहस्पति और शनि

21 दिसम्बर तारीख इस साल दो वजह से स्पेशल है| एक तो यह साल का सबसे छोटा दिन होगा और दूसरी वजह है कि इस दिन आसमान में बृहस्पति और शनि ग्रह एक दुसरे के बहोत करीब आयेंगे| वे इतने करीब 800 साल पहले आये थे| आसमान में ग्रह एक दुसरे के करीब आने की घटना को युति (Conjuction) कहा जाता है| अगर हम आसमान को देखे तो यह समझ आ जाता है कि सभी तारे आसमान के पटल पर स्थिर है और ग्रह, सूर्य और चन्द्रमा इन तारों की तुलना में गतिमान है| इसी वजह से आसमान में ये कई तरह के नज़ारे हमे दिखाते है| युति की घटनाये ग्रहों के बिच, चन्द्रमा और ग्रहों के बिच भी होती है| वैसे तो चन्द्रमा से जुडी युति की घटनाये काफी बार हम देख पाते है लेकिन बृहस्पति और शनि के बिच ये घटना को होने में कुछ सालों का समय लगता है| बृहस्पति और शनि एक दूसरे के करीब 20 सालों में एक बार गुजरते है| पिछली बार ये दोनों ग्रह एक दुसरे के करीब 28 मई 2000 में थे| उस समय ये दोनों ग्रह सूरज के काफी नजदीक होने की वजह से इनकी युति को देखना मुश्किल था| बृहस्पति और शनि बिच की दुरी उस समय 1 डिग्री 9 मिनट* थी| इस साल यह दुरी और कम हो कर सिर्फ 6 आर्क मिनट होगी| इतनी कम दुरी की वजह से ये दोनों ग्रह एक ही नज़र आयेंगे|  

21 दिसम्बर को बृहस्पति और शनि, स्त्रोत Stellarium

युति की घटना हम इसलिए देखते है कि ग्रह अपनी कक्षा में घूमते है, जिन ग्रहों की कक्षा छोटी होती है वह तेजी चलते हुए दूर की कक्षा में धीमे घुमने वाले ग्रह से आगे निकल जाते है| हमारे आसमान का पटल हमे दो आयामों में नजर आता है उस पटल पर ये ग्रह धीरे धीरे करीब आते हुए हमे दिखते है और फिर एक दुसरे से दूर जाते हुए दिखते है| कुछ ऐसा ही बृहस्पति और शनि के साथ होगा| अगर हम इन दोनों ग्रहों को आज से ही देखना शुरू करेंगे तो देखेंगे की इन दोनों ग्रहों में कुछ अंतर होगा| लेकिन आने वाले दिनों में यह अंतर कम होते जायेगा| वह इसलिए क्यूंकि बृहस्पति की कक्षा छोटी है इस वजह से तेजी से घूमते हुए अगले कुछ दिनों में शनि के बराबर आएगा और हमे इन दोनों ग्रहों की युति की स्थिति दिखेगी| भले हमारे आसमान में ये दोनों ग्रह एक दूसरे के करीब होंगे, मगर वास्तव में अन्तरिक्ष में इनकी दुरी काफी ज्यादा होगी| 21 तारीख के बाद बृहस्पति अपनी कक्षा में और आगे बढ़ जायेगा और शनि पीछे छुट जायेगा और हमारे आसमान में हम इन ग्रहों को एक दुसरे से दूर जाते हुए देख पाएंगे| 

युति के समय बृहस्पति और शनि की पृथ्वी सापेक्ष स्थिति| स्त्रोत timeanddate.com

21 दिसम्बर की बृहस्पति-शनि की युति देखने के लिए हमारे पास समय बहुत कम होगा क्यूंकि ये दोनों ग्रह अब सूरज के काफी नजदीक जा रहे है| 21 की शाम को जैसे ही सूर्य अस्त हो जाता है ये दोनों ग्रह दक्षिण-पश्चिम की दिशा में देखे जा सकते है| सूर्यास्त के बाद करीब इन्हें 1 घंटे तक देखा जा सकता है| इस दौरान आप ऐसे जगह जा सकते है जहा से आप दक्षिण-पश्चिम क्षितिज को साफ़ देख पाए| इनके बिच की दुरी 6 आर्क मिनट की होगी| हमारे आसमान में दिखने वाले पुरे चन्द्रमा का आकार 1/2 डिग्री या 30 आर्क मिनट होता है| उसकी तुलना अगर इन दोनों ग्रहों की दुरी में की जाए तो पुरे चाँद के 5 वें हिस्से के बराबर होगी| अगले आने वाले हर 20 वर्षों में ये दो ग्रह बार बार युति करेंगे लेकिन फिर से इतने ही करीब वे 2080 में आयेंगे| इसलिए आप इसे जरुर देखिये|

दिसम्बर में बृहस्पति और शनि के बिच की दुरी हर दिन कम होते जाएगी और 21 दिसम्बर को वे युति की स्थिति में आ जायेंगे| स्त्रोत BBC, skynightmagazine.com



*हमारे आसमान में ग्रहों, चन्द्रमा, सूर्य या तारों का आकार और आपस की दुरी नापने के लिए डिग्री, मिनुत और सेकंड की इकाई का इस्तेमाल किया जाता है| यह इसलिए की बहोत शुरुवाती समय से आसमान की कल्पना एक गोले के रूप में की गयी और गोले में मापन की इकाई भी यही है| 


Tuesday, July 21, 2020

Observation Log: C/2020 F3 Neowise comet

Date- 20 July 2020
Time- 20:30 hrs- 20:40 hrs
Location- Sirohi, Rajasthan
50 x 20 Binocular and 90 mm x 25 mm Refractor
Conditions - Partly clouded
Object- C/2020 F3 Neowise comet

Finally seen comet Neowise after chasing it for almost fifteen days. Chasing comet is a different kind of thrill. They are swift and ghostly objects in the sky. You miss them by a day or two they will be in different direction of sky. So you also need to be very fast. This comet appeared in the morning sky early of this month. July is the monsoon month in India and sky can remain overcast for months. But hope is the only key and one can hope that clouds will get apart and  comet will reveal itself to you. Its a fantasy that every astronomer have on cloudy days. 

Sketch of Neowise by me on 20 July 2020 From Sirohi, Rajasthan. Comet was near to theta Ursa Majoris.
I spent a week to see this comet in early hours of morning. But clouds can make you feel fool. For two days entire sky was clear and clouds only gathered in the area where exactly comet was. On those days I observed  moon, Jupiter, Saturn and Mars very clearly. Then comet moved towards east in the sky surpassing the sun and appeared in the evening sky. Again, with full of hope, I started digging in evening sky. This time also clouds never disappointed me and appeared exactly in the same location of comet. For next three four days I spiritually continued my search. Meanwhile social media Facebook, Instagram and WhatsApp were flooded with images of this Comet from worldwide photographers. Those images are really beautiful and tempted me to continuously look for comet. 

Finally on 20th July, evening sky started getting clear at north-west horizon where comet was located. I was hoping that it will stay clear till twilight get over. Nowadays in summer, twilight disappear by 8:15 pm. After 8:15 pm only one can see celestial object in west side. I started looking for comet. I  was searching that area for 5 minutes and then suddenly I located comet. I was jumped with joy and excitement. It was blue hairy hazy object not far that 6 to 7 degrees from Theta Ursa Majoris star. I quickly set up telescope with 25 mm eyepiece. It took time to locate it in telescope. From telescope its tail was not visible properly but its coma were bright blue and hazy.

After Hale-Bopp comet I have seen this comet with tail. I have seen comet Macholz and Catalina but they were just hazy balls without tail. Observing comet with tail is like looking at lion with mane. It will give you goosebumps. These tails are the real attraction of comets. Comets are clumsy fragile objects made up from water, different gaseous and volatile material.When they are far from sun all material remains intact to comet. As they come near to sun, gaseous and volatile material start melting and slipping away from main body of comet. This appear as a tail. Not all comets displays tail as a mentioned like comet Macholz and Catalina they were appeared as a hazy balls in sky.  

I started my interest in astronomy due to comets only. In 1996, my father took me and and my little sister to small hill side, near our home to show this fantastic object.  It was hairy white blue object. Hale-Bopp was the name of that comet. After that comet I started to look up and was amazed with celestial drama. Hale-Bopp was visible to the naked eye for record 18 months from May 1996 and faded to naked eye by December 1997. It was discovered on 23 July 1995 by Alan Hale and Thomas Bopp separately. This year 2020 is the 25th anniversary of Hale-Bopp discovery. 

Comet NEOWISE was discovered by a Wide-field Infrared Survey Explorer (WISE) space based telescope. This WISE space telescope runs a different project and this comet was discovered under near earth object (NEO) detection project NEOWISE. Hence it named as comet 'Neowise.'

I remember a line from a comet hunter David Levy about comet 'Comets are like cats; they have tails, and they do precisely what they want'. Take it as metaphor, because of their unpredictable nature. When astronomers expect great show from them they just gives fuzz. Sometimes they unexpectedly show a great displays. Astronomers has predicted Neowise will appear in evening sky till October but after July its visibility will gradually decrease to unaided eyes. 

Sketch of Comet Neowise on 21 July 2020 by me from Sirohi Rajasthan. Its position shifted on second day.







Tuesday, June 23, 2020

अविस्मरणीय... सूरतगढ़ का सूर्य ग्रहण



गज़ब!!!
जबरदस्त!!!
वाऊ, फैंटास्टिक!!!
जब चन्द्रमा सूरज के बिल्कुल सामने आ गया और रिंग ऑफ़ फायर नुमा नज़ारा बन गया तब यही अल्फाज़ हमारे मुंह से निकले| वलयाकार सूर्यग्रहण का ऐसा नज़ारा देखकर हम सभी रोमांचित हो गए थे| ऐसा नहीं है कि मैंने पहले कभी वलयाकार ग्रहण नहीं देखा है| पहले भी ऐसा ग्रहण मैंने देखा है, लेकिन इस बार जो देखा वह कमाल का था| 21 जून 2020 का वलयाकार सूर्यग्रहण भारत से बहुत कम हिस्से से देखा गया| अफ्रीका से शुरू होकर सऊदी अरब और दक्षिण पाकिस्तान से गुजरनेवाली चन्द्रमा की छाया भारत के उत्तरी राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड से गुजरी| आगे यह छाया तिब्बत, चीन से होकर प्रशांत महासागर में खत्म हुयी|
21 जून 2020 का वलयाकार सूर्य ग्रहण

इस साल का यह पहला सूर्य ग्रहण था और काफी ख़ास भी| वह इसलिए भी क्यूंकि इस दशक में भारत से दो वलयाकार ग्रहण दिखे और यह आखिरी था| अब भारत से अगला वलयाकार सूर्यग्रहण 21 मई 2031 में यानी ग्यारह साल बाद दिखेगा| दूसरे यह ग्रहण इसलिए भी ख़ास था क्यूंकि यह ऐसे समय हो रहा था जब पूरी दुनिया के साथ साथ भारत में भी कोरोना महामारी फैली थी| वैसे तो सूर्यग्रहण के नज़ारे देखने के लिए दुनियाभर से लोग उन जगहों पर पहुँचते हैं जहां से सुर्यग्रहण दिखानेवाला हो| लेकिन इस साल दुनिया थम सी गयी थी| एक्का-दुक्का लोग ही उन जगहों पर पहुँच पायें जहां से इसे देखा जाना था|
आकाशमित्र के साथ मैंने भी इसे देखने की तैयारियां छह महीने पहले शुरू कर दी थी| टिकट बुकिंग, प्लान, कहाँ जाना है, कब जाना है, सब कुछ| पर मार्च महीने के आते-आते भारत में कोरोना महामारी ने पैर पसारना शुरू कर दिए और भारत में भी लॉकडाउन के ताले लग गए, ताकि इस बीमारी को फ़ैलाने से रोका जाए| हमे फिर भी उम्मीद थी कि कुछ दिन बाद शायद बीमारी रुक जाए तो हमे सूर्यग्रहण देखने का मौका मिल जायेगा| लेकिन जैसे जैसे वक़्त बीतता गया यह महामारी बढती ही गयी और हमारी ग्रहण देखने की उम्मीदे कम हो गयी| मार्च, अप्रैल मई पुरे देश में आवाजाही बंद रही| दुनिया के हालत बद से बदतर हो रहे थे| लेकिन जून में देश की कई राज्य सरकारों ने लॉकडाउन को अनलॉक किया और आवाजाही शुरू हो गयी|
ग्रहण देखने की थोड़ी उम्मीद तो बढ़ी लेकिन फैलती बीमारी से हिम्मत तो नहीं बढ़ रही थी| कोशिशें फिर भी जारी थीं| हालांकि अब हमारी ग्रहण देखने की जगह बदल गयी थी| आकाशमित्र के दो साथी मनोज जी और शिशिर लगातार मेरे संपर्क में थे| प्रयास था कि राजस्थान के किसी इलाके से इसे देखा जाये| मैं भी जगह ढूंढ रहा था| राजस्थान के सूरतगढ़ के मेरे दोस्त गौरव से बातचीत हुई क्यूंकि जिस इलाके से ग्रहण गुजरने वाला था उसमे सूरतगढ़ भी शामिल था| लेकिन पल पल बदलती परिस्थितियां किसी भी प्लान को टिकने नहीं दे रही थी| एक दिन कुछ स्थानीय सरकारी अधिकारियों से बातचीत कर रहे थे तो उन्होंने राजस्थान सरकार के राज्य की सीमा को बंद करने के आदेश दिखाए| उम्मीद पर एक बार पुनः पानी फिर गया| मनोज जी से बात हुयी उन्होंने कहा कि हम नहीं आ पाए तो तुम जरुर चले जाना|
एक दिन बाद स्थानीय सरकारी अधिकारी ने मेसेज भेजा कि सरकार ने राज्य सीमाएं फिर से खोल दी है और बाहर से आनेवाले किसी को अब नहीं रोका जायेगा| अब शिशिर और मनोज जी को मैंने कहा कि वे आ सकते हैं|
सूरतगढ़ राजस्थान का एकमात्र शहर था जो सभी तरह के लॉकडाउन में ग्रीन ज़ोन बना रहा था| लेकिन आगे की परिस्थितियां हम भी नहीं जानते थे| सूरतगढ़ के दोस्त के साथ मिलकर कुछ व्यवस्थाएं बनायीं| शुक्रवार की सुबह से दोपहर तक हमारा प्लान बिगड़ते बिगड़ते वापस पटरी पर आया| शिशिर और मनोज जी पुलिस और मेडिकल क्लीयरन्स लिया और चल पड़े| रात का सफर तय कर के उन्हें सुबह सिरोही पहुँचे|
फिर हम तीनों निकल पड़े सूरतगढ़ की ओर| दिन भर की गर्मी में की गयी यात्रा काफी थकान भरी रही| हमने उस रात होटल में रहने का फैसला किया| वैसे साथ में टेंट भी था लेकिन सूरतगढ़ की गर्मी के सामने हमारी टेंट में रहने की हिम्मत नहीं बनी| हालांकि मन में दुविधा भी थी लेकिन थकान और गर्मी के सामने दुविधा कमजोर पड गयी| मेरे मित्र का भाई सौरव हमसे मिलने आया था| हम भी सोच रहे थे कि कहाँ से ग्रहण को देखे| हम यह नहीं चाहते थे कि किसी के संपर्क में आये, तो कोई ऐसे जगह की पूछताछ हमने उससे की| उसने कहा कि भाईसा, ग्रहण के दिन कोई बाहर नहीं निकलेगा तो भीड़ की चिंता तो आप छोड़ दीजिये लेकिन यहाँ आसपास तो सिर्फ रेत के टिब्बे हैं| इस समय भरी गर्मी में रेत के टिब्बों पर से ग्रहण देखना मुश्किल है और आपको आसपास कोई छांव भी नहीं मिलेगी| बेहतर होगा कि आप होटल की छत से ही देख लो| यह उपाय भी ठीक था हमे पसंद भी आया क्योंकि आते वक्त की गर्मी हम झेल चुके थे|  तय हुआ कल का ग्रहण होटल की छत से देखा जाये|
सुबह तड़के ही हम उठ गए ऊपर छत पर गए तो देखा की आसमान में बादल ही बादल फैले हैं और शहर के आसमान  पर धुल की चादर भी थी| शायद रात को रेत की आंधी आई हो| मन में विचार आया कि इतनी दूर आ कर क्या ग्रहण देख पाएंगे? शिशिर ने झट से मौसम विभाग की साईट देखी तो सॅटॅलाइट इमेज में काफी दूर तक बादल दिख रहे थे| लेकिन हवा भी चल रही थी| घंटे भर में बादल हटना शुरू हुए| हमने भी तैयारी शरू कर दी| सुबह 10 बजे के करीब हम छत पर पहुँच गए| आसमान एकदम साफ़ हो गया था|
करीब 10 बज कर 15 मिनट पर चन्द्रमा ने सूर्य के पश्चिमी किनारे को छुआ| ऐसे लगा कि सूरज की सुनहरी थाली का एक टुकड़ा टूट हो गया हो| धीरे धीरे चन्द्रमा सूर्य को ढंकने लगा| सूरज की रोशनी में गिरावट लगातार दिख रही थी| इस दरमियान कुछ पत्रकारों को खबर लग गयी थी कि कुछ लोग सूर्यग्रहण देखने सूरतगढ़ आये हैं| वे हमसे आकर मिले| लेकिन अन्दर से हमे लग रहा था कि शायद हमे इनसे बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम बहुत दूर से ऐसे महामारी के समय आये हैं| हम नहीं चाहते थे कि किसी भी तरह के संक्रमण की वजह या तो हम या तो वे लोग बने| पर ग्रहण जैसी घटना को उन लोगों तक पहुँचाना भी जरुरी लगा जो घरों में छिपे बैठे थे| ऐसे में उनसे भी उचित दूरी बनाकर बातचीत की| उन्होंने भी ग्रहण के चश्मों से ग्रहण देखा| अंधविश्वास पर भी उनसे बात हुयी| भरे ग्रहण में सब ने पानी भी पिया|
सूर्य के सामने आता हुआ चन्द्रमा

पत्रकारों से बात करने के दौरान कुछ सवाल आये थे जैसे क्या इस ग्रहण का कोरोना महामारी के साथ कोई सम्बन्ध है? 2020 साल बहोत बुरा रहा क्या इस ग्रहण की वजह से और भी मुश्किलें बढ़ेंगी क्या? ग्रहण की छाया अशुभ होती है क्या? वैसे तो इस तरह के सवाल ग्रहण के दौरान काफी पूछे जाते है| लेकिन जब इस पर बात होती है कि सूर्य और चन्द्रमा एक दुसरे के आमने सामने आते हैं तो ग्रहण होता है इसका शुभ अशुभ से कोई नाता नहीं है| कई सारे लोग इस बात में हाँ भी मिलाते हैं| यह भी मानते हैं कि सूर्य के सामने चन्द्रमा आता है उसकी छाया पृथ्वी पर पड़ती है कोई शुभ अशुभ नहीं होता| लेकिन ग्रहण के वक्त यही लोग घरों में छुपकर बैठते हैं और सभी तरह के धार्मिक कर्मकांड करते हैं|
अब तो 2020 साल को भी बुरे साल कि उपाधि मिल गयी है| कुछ लोगों के अनुसार सभी तरह की बुरी घटनाये ये साल लाया और उसपर यह ग्रहण भी| इस तरह की मान्यताएं पहले भी समाज रह चुकी है| ग्रहण दिखने या धूमकेतु दिखने पर किसी राजा की मौत के होने या महामारियों का फैलने से जोड़ दिया जाता है| ग्रहण को ईश्वर का प्रकोप या चेतावनी मानने वालों की संख्या कभी कम नहीं रही है| लेकिन विज्ञान की खोज़ से यह साफ हो चुका है कि मानव या मानवीय समाज में घटने वाली घटनाओं के पीछे किसी भी खगोलीय पिंडो या घटनाओं की भूमिका नहीं होती| महामारियां सूक्ष्मजीवों से फैलती है न की ग्रहण की वजह से और ना ही महामारियों को ग्रहण की वजह से फैलने में बल मिलता है| यह तो प्राकृतिक घटनाएँ है|  
रिंग ऑफ़ फायर के कुछ हिस्से चन्द्रमा के पहाड़ों की वजह से टूटे हुए दिख रहे है|

अग्निवलय के बाद की स्तिथि

जैसे जैसे ग्रहण की घडी समीप आने लगी वैसे हम और भी सतर्क हो गए| सूर्य के सामने अब धीरे-धीरे चन्द्रमा आने लगा| चन्द्रमा का आकार सूर्य के आकार से थोड़ा सा ही कम था| रोशनी में तेजी से गिरावट आ गयी| रोशनी एकदम तो बंद नहीं हुयी लेकिन लगभग शाम जैसा माहौल हो गया| 11 बजकर 52 पर सूर्य के सामने चन्द्रमा पूरी तरह आ गया| लेकिन चन्द्रमा जरा सा छोटा होने की वजह से सूर्य का जरा सा बाहरी हिस्सा खुला रह गया और एक अग्नि-वलय बन गया| इस वलय की मोटाई पिछले वलयाकार सूर्य ग्रहणों से काफी छोटी थी| चन्द्रमा के दक्षिणी हिस्से के ऊँचे पर्वतों की वजह से इस वलय का कुछ हिस्सा टुटा हुआ सा लग रहा था| हमारे पास बस यही अल्फाज़ थे बेहद शानदार और खुबसूरत| यही वह नज़ारा जिसने हमारी यात्रा को सफल बनाया| कुछ की सेकंड्स में चन्द्रमा सूर्य के सामने से थोड़ा सा हट गया और अग्नि-वलय दिखना बंद हो गया| धीरे-धीरे चन्द्रमा सूर्य के सामने से गुजरता हुआ पूर्व की ओर बढ़ रहा था| अब फिर से सूर्य की रोशनी बढ़ रही थी और तापमान भी| 1 बज कर 50 मिनट पर चन्द्रमा सूर्य के सामने से पूरी तरह से हट गया था| इतनी दूर आकर ग्रहण के समय चन्द्रमा के पहाड़ और अग्नि-वलय देखना काफी मजेदार अनुभव था|
सूरतगढ़ की वीरान पड़ी सड़के
 
तुरंत हम लोगों ने खाना खाकर सूरतगढ़ से विदाई ली| आज के दिन सूरतगढ़ का माहौल काफी अलग था| कल के दिन जब सूरतगढ़ आये थे तब वहा काफी चहल-पहल थी, मार्किट खुले थे, काफी लोग आम दिनों जैसे ही घूम रहे थे| लेकिन आज तो मार्किट की एक भी दुकान खुली नहीं थी| सड़के भी वीरान पड़ी थी| ग्रहण के दिन में आज भी भारत में यह आम बात है| यह भी बड़ी विडम्बना है कि आज कोरोना महामारी के समय हर एक व्यक्ति इस बीमारी से इजात पाने के लिए विज्ञान की तरफ आस लगाकर बैठा है और एक तरफ वो ग्रहणों को अशुभ मानकर घर में ईश्वर की पूजा में भी बैठा है| पढ़े लिखे समाज में आज इस दुविधा को काफी आसानी से देखा जा सकता है|
खैर महामारी के ऐसे समय में देखा गया यह ग्रहण हमारे लिए हमेशा यादगार रहेगा|

Thursday, May 14, 2020

गुलाम- स्पार्टाकस से ओबामा तक, वर्णद्वेषी गुलामी का अमानुष सफ़र


किताब का परिचय

गुलाम यह किताब मैंने सालभर पहले मंगवाई थी. लेकिन उसे पढने का मौका पिछले हफ्ते मिला. अच्युत गोडबोले और अतुल कहाते इन दो मराठी लेखकों ने इसे मिलकर लिखा है. अच्युत गोडबोले की गणिती, किमयागार और कैनवास यह किताबें में पहले पढ़ी है. एक ख़ास विषय के साथ व्यक्तिओं की पहचान वे अच्छी तरह कर देते है और साथ में ही इतिहास की झलक भी दिखा देते है. अतुल कहाते भी मराठी में विज्ञान विषय के साथ साथ सामाजिक विषयों पर लिखते रहते है. दोनों ने मिलकर गुलामों की कहानी इस किताब में लिखी है.

गुलामी मानवी सभ्यता को नयी नहीं है. जब से मानवी सभ्यताओं का उदय होना शुरू हुआ तब से ही गुलामी का जन्म हुआ. शिकारी जीवन को छोड़कर मनुष्यों ने एक जगह बसकर नयी सभ्यताओं की शुरुवात की. तभी से सम्पत्ति का बटवारा समाज के विभिन्न वर्गों में समान नहीं था. कुछ धनिक लोगो ने कमजोर वर्गो के लोगो को जबरन पकड़ कर उन्हें गुलाम बनाने की प्रथा शुरू की. शुरुवाती सभ्यताओं से ही यह परंपरा कायम रही. ग्रीस और रोम जैसे साम्राज्य भी गुलामों के श्रम पर संपन्न हुए. रोम और ग्रीस के लोगों को सुखी जीवन जीने के लिए गुलाम रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था. उसके पीछे गुलामों का व्यापर बढे यह भी हेतु होता था.

गुलामों से हर तरह के काम करवाए जाते थे. घर के काम, खेती के काम साथ में ही उन्हें मालिक का मनोरंजन भी करना पड़ता था. यहाँ मनोरंजन मालिक की शारीरिक भूख मिटने से लेकर ग्लाडीएटर जैसे खुनी खेल खेलने तक होता था. मालिकों के इस अत्याचार का बदला कभी कभी कोई गुलाम ले ही लेता कभी भागकर तो कभी मालिक का खून कर के. ऐसे मामलों में अगर गुलाम पकड़ा जाता तो उसकी कोई खैर नहीं होती. उसे टॉर्चर कर के मारा जाता. गुलामों के नियम बहोत ज्यादा जुलमी होते थे. गुलामों का जन्म सिर्फ गुलामी के लिए हुआ है यही उन्हें बर्बर बताया जाता ताकि वोह कभी कुछ और न सोच सके. सुकरात और अरस्तु साथ साथ सभी दार्शनिक भी गुलामी का समर्थन करते थे. रोम साम्राज्य में एक वक्त तो गुलामों की संख्या कुल लोकसंख्या के 40% थी.

ईसापूर्व पहली सदी में गुलामों ने एक क्रांति को जन्म दिया. इस क्रांति का नायक था स्पार्टाकस. स्पार्टाकस पहले एक खदान पर गुलामी करता था. स्पार्टाकस को बचपन में एक व्यक्ति ने पथ्थर पर पढ़ना सिखया था. उसने स्पार्टाकस से कहा था ‘ स्पार्टाकस, ज्ञान एक हथियार है. ज्ञान के बिना हम जानवर है. बहोत पहले कोई गुलाम नहीं था. ऐसा समय फिर आएगा.’ शायद इसी वजह से स्पार्टाकस आजादी के सपने देखा करता था. बतियातुस नाम के गुलामों के व्यापारी ने उसे ग्लाडीएटर खेल के लिया ख़रीदा था. उसे लड़ने का प्रशिक्षण दिया. बतियातुस लड़ाकू गुलामों का अच्छा ध्यान रखता था. पर थी तो वह गुलामी ही. स्पार्टाकस ने सभी गुलामों को इकठ्ठा किया और जुल्मी रोमन साम्राज्य के खिलाफ जंग छेड़ दी. रोमन साम्राज्य ने गुलामों की लड़ाई को बहोत हलके में लिया था. गुलामों ने महान रोमन साम्राज्य की सेना को पांच बड़ी लड़ाई में शिकस्त दी. आखरी लड़ाई ने रोमन सेना ने पूरा जोर लगाकर स्पार्टाकस की सेना को हराया. स्पार्टाकस भी मारा गया. पर स्पार्टाकस ने आनेवाली कई गुलामों की पीढ़ियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी.

रोम साम्राज्य के अंत के बाद भी गुलामी जिन्दा रही. इसे कायम रखा अलग अलग धर्मों ने. ख्रिस्ती धर्म ने शुरुआत में तो गुलामी को खुला समर्थन नहीं दिया था पर उसने उसके खिलाफ कुछ कहा भी नहीं. ख्रिस्ती धर्मने गुलामी को हमारे पापों को ख़त्म करने का जरिया बताया. इससे उन्होंने तो अच्छा व्यापार भी बनाया. चर्च के पास कई गुलाम हुआ करते थे. इस्लाम में भी गुलामों को लेकर काफी कुछ कहा गया है. मुहम्मद और उसके साथी कई गुलाम खरीदते थे उन्हें बेचते भी थे और मुक्त भी करते थे. महम्मद ने 63 गुलामों को मुक्त किया था. इस्लाम में मानना था की एक मुक्त मुस्लिम व्यक्ति और गुलाम मुस्लिम व्यक्ति, किसी मुक्त गैर मुस्लिम व्यक्ति से महान है. इस्लामिक कायदे के मुताबिक किसी मुक्त मुस्लिम को गुलाम बनाया जा सकता था. लेकिन, किसी गुलाम ने अगर इस्लाम काबुल किया तो उसके लिए वह गुलामी से मुक्त होने का जरिया नहीं हो सकता था. आठवी सदी से उन्नीसवी सदी तक कई मुस्लिम शासकों ने कई यूरोपियन लोगो को गुलाम बनाया था.

भारत में भी गुलामी की जड़े वेद काल से मिलती है. पर यहाँ पर रोम की तरह गुलामों के बाज़ार नहीं लगते थे. यहाँ पर की गलामी का स्वरुप थोडा भिन्न रहा हो ऐसा मन जाता अहै. लेकिन भारत में जातिव्यवस्था जबसे ज्यादा अत्याचारी थी. यहाँ पर गुलाम की जिंदगी किसी निचले जाती के इन्सान से कई ज्यादा  आसान थी. निचले जाती के लोगों को अपने जीवन आवश्यक जरुरतो को पूरा करना भी मुश्किल था.

जब यूरोपियन उपनिवेश शुरू हुए तब यूरोपियन देशों ने गुलामो के व्यापर को तेज किया. इसमें सबसे ज्यादा अफ्रीका के लोगो को गुलाम बनाया गया और उन्हें दुनियाभर के उपनिवेशों में भेजा गया. अमेरिका में गुलामों की सबसे ज्यादा मांग रही. अमेरिकाने जीतनी बुरी तरह गुलामो के साथ व्यवहार किया वह शायद ही इतिहास में किसी देश ने किया हो. गुलामी ने अब काले लोगो का रंग ले लिया था. अमेरिका के साथ साथ दुसरे उपनिवेशों में काले लोग यानि कम बुद्धिवाले इन्सान जो गुलामी के लिए बने होते है, यही समीकरण बनाया गया. काले वर्ण के लोगों को अफ्रीका से डच, पोर्तुगीज, फ्रेंच, जर्मन और अंग्रेज़ अपने उपनिवेशों में ले जाते थे. गुलामों के व्यापर के कोई कायदे नही होते थे. गुलामों के लिए तो कायदे थे ही नहीं. उनका दोहन किसी भी तरह से किया जा सकता था.

अंग्रेजो ने सबसे पहले गुलामी के खिलाफ कुछ कायदे बनाये. अमेरिका में जहाँ जहाँ अंग्रेज़ उपनिवेश थे वहा गुलामी कुछ कम थी. अमेरिका के स्वतंत्रता के बाद वह पर के राज्यों को गुलाम रखने के कायदे बनाने की सहूलियत थी. उत्तर के राज्यों में जहा पहले अंग्रेजी उपनिवेश थे वहा गुलामी कम थी लेकिन दक्षिणी राज्यों में गुलामी बहोत ज्यादा थी. दक्षिणी राज्यों का सारा व्यापार गुलामों की मेहनत पर निर्भर था. अमेरिका में काले गुलामों के लिए कुछ जन आन्दोलन शुरू हुए. फिर धीरे धीरे यह आन्दोलन ने युद्ध का स्वरुप ले लिया. अब्राहम लिंकन पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने अमेरिका में गुलामी के खिलाफ लड़ाई छेड़ी. लेकिन लड़ाई ख़त्म होने से पहले लिंकन को मारा गया. अमेरिका के यादवी युद्ध के बाद गुलामी को ख़त्म किया गया पर काले लोगो को इंसानों को इंसान का दर्जा नहीं दिया गया.

काले लोगो को न शिक्षा का अधिकार था, न अच्छी नौकरी करने, न वोट देने का. उन्हें हर वह चीज देने से मना किया गया जो उन्हें इन्सान होने का दर्जा दे सकती थी. ऐसाही कुछ दक्षिण अफ्रीका के स्थानीय लोगो के साथ गोरे लोगो ने किया. अमेरिका ने अपने दोस्त दक्षिण अफ्रीका का भी काले का दोहन करने में बहोत साथ दिया. अमेरिका में करीब सौ सवासो साल लगे काले लोगो को सार्वजनिक समानता मिलने के लिए. लगभग उतने ही दक्षिण अफ्रीका के काले लोगो को भी लगे. अपने संघर्ष के दौरान काले लोगो को काफी खून खराबे का भी सामना करना पड़ा. अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग और अफ्रीका में नेल्सन मंडेला जैसे गांधीवादी नेताओं के नेतृत्व में लोगो ने अहिंसापूर्ण आन्दोलन किया. पहले अफ्रीका में मंडेला काले वर्ण के राष्ट्रपति बने फिर अमेरिका में भी ओबामा राष्ट्रपति बने. अलग अलग क्षेत्रों में काले वर्ण के लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान देकर अपनी काबिलियत साबित की और दिखा दिया की वोह किसी और इंसानों से अलग नहीं है.

इस किताब में गुलामों एक पूरा इतिहास बताने की कोशिश की गयी है. गुलामी इस दुनिया और समाज को काफी प्रभावित किया. इतिहास में गुलाम का रूप काफी बार बदला गया कभी ये गरीब थे कभी ये युद्ध बंदी थे तो कभी काले लोग. दुनिया में आज गुलामी करवाना अपराध माना जाता है. पर दुनिया आज भी गुलामी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुयी है. दुनिया में आज भी अलग अलग रूप में गुलामी मौजूद है. इसकी सबसे ज्यादा मार स्त्रियाँ और छोटे बच्चे झेलते है. गुलामी की संघर्ष कहानी बतानेवाली यह किताब पढ़ने लायक है.

किताब का नाम : गुलाम - स्पार्टाकस ते ओबामा, वर्णद्वेषी गुलामगिरिचा अमानुष प्रवास (गुलाम- स्पार्टाकस से ओबामा, वर्णद्वेषी गुलामी का अमानुष सफ़र)
लेखक : अच्युत गोडबोले , अतुल कहाते
पब्लिशर: मनोविकास प्रकाशन



Sunday, January 5, 2020

आज धरती है सूर्य के सबसे नजदीक....

आज दिन कुछ विशेष है| आज पृथ्वी अपनी कक्षा में सूर्य के सबसे ज्यादा करीब है| हम जानते है के हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों और घुमती है| लेकिन यह सूर्य के इर्द गिर्द गोलाकार कक्षा में नहीं घुमती| पृथ्वी की कक्षा थोड़ीसी दीर्घ वृत्ताकार है| मतलब यह सूर्य से एक दुरी बना कर नहीं घुमती| पृथ्वी अपनी कक्षा में कभी सूर्य से दूर होती तो कभी पास| जब यह सूर्य के पास होती तो उस बिंदु को Perihelion या उपसौर बिंदु कहा जाता है और जब ये सूर्य से दूर होती तो उस बिंदु को Aphelion या अपसौर बिंदु कहा जाता है| सूर्य और पृथ्वी के बिच की दुरी हमेशा एक औसत आंकड़े के रूप में ही दी जाती है| यह औसतन दुरी अपसौर और उपसौर बिंदु के बिच की होती है| यह औसतन दुरी लगभग 149.6 मिलियन किलोमीटर है|

सूर्य और पृथ्वी, सौजन्य- nasa
पृथ्वी अपसौर बिंदु याने सूर्य से सबसे ज्यादा दूर पर जुलाई महीने के 4 तारीख से 7 तारीख में होती है| तब धरती की सूर्य से दुरी लगभग 151.1 मिलियन किलोमीटर होती है| इस वर्ष याने 2020 मे यह 4 जुलाई को अपसौर बिंदु पर होगी और सूर्य से 152,095,295 किलोमीटर दूर होगी| 

इस वर्ष 2020 में आज याने 5 जनवरी को सूर्य के सबसे ज्यादा पास है| आज पृथ्वी की सूर्य से दुरी 147,091,144 किलोमीटर है| हर वर्ष यह 2 से 5 जनवरी के बिच में इस बिंदु पर पोहोचती है| अपसौर और उपसौर बिंदु के तारीखों से पता लगता है की इन बिन्दुओ पर पृथ्वी उत्तर अयनांत (21 जून) और दक्षिण अयनांत (22 दिसम्बर) के लगभग दो हफ्ते बाद आती है| 
सूर्य और पृथ्वी के बिच की दुरी, सौजन्य-timeanddate.com

यह सवाल कई लोगो के मान में आता है की क्या पृथ्वी के दीर्घ वृत्ताकार कक्षा का प्रभाव पृथ्वी के ऋतुओं पर भी होता है? लेकिन आप गौर करेंगे तो पता चलेगा की भारत या पृथ्वी के उत्तर गोलार्ध में दिसम्बर और जनवरी में सर्दियां होती है| और यही दिनों पृथ्वी उपसौर बिंदु याने सूर्य के नजदीक होती है| जून-जुलाई के वक़्त अपसौर बिंदु या सूर्य से दूर होती है| तब भी यहाँ झुलसाने वाली गर्मी पड़ती है| 

पृथ्वी पर होनेवाली ऋतुओं के चक्र में पृथ्वी के सूर्य की दुरी के बजाय पृथ्वी के अक्ष के झुकाव की भूमिका है| पृथ्वी के घूर्णन का अक्ष, पृथ्वी और सूर्य के तल के सापेक्ष 23.4 डिग्री झुका हुआ है| और यह अक्ष आकाश में ध्रुव तारे की और झुका हुआ दिखता है| पूरी रात भर आसमान में हम देख सकते है की सभी तारे पूर्व से पश्चिम की तरफ चले जाते है ( पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व घुमती है इसलिए हमे तारे पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए दिखते है|) लेकिन ध्रुव ताराआकाश में उसी जगह अडिग दीखता है| 

पुरे वर्ष भर में पृथ्वी की कक्षा में स्तिथि और अक्ष की झुकाव से होने वाला ऋतू परिवर्तन, सौजन्य- phys.org

जब धरती सूर्य के इर्द गिर्द घुमती है तो इसी झुकाव की वजह से कभी उत्तर गोलार्ध सूर्य के सामने तो कभी दक्षिण गोलार्ध सूर्य के सामने आते है| जब उत्तर गोलार्ध जून और उसके आसपास के महीनो में सूर्य के सामने होता है तब उत्तर गोलार्ध में गर्मियां पड़ती है| यहाँ सूर्य की किरने सीधी पड़ती है और कम क्षेत्रफल में ज्यादा किरने पड़ती है और उत्तर गोलार्ध गर्म हो जाता है| इन्ही महीनो में दक्षिण गोलार्ध सूर्य से दूर हो जाता है| सूर्य की किरने यहाँ सीधी पड़ने की बजाय कुछ कोण बनाकर पड़ती है और ज्यादा क्षेत्रफल में कम सूर्य की किरने पोहोच पाती है| इसलिए दक्षिण गोलार्ध में सर्दिया पड़ती है| इसी के उलट परिस्थिति दिसम्बर और उसके आसपास के महीनो में होती है| तब उत्तर गोलार्ध सूर्य से दूर चला जाता है और दक्षिण गोलार्ध सूर्य के सामने आ जाता है| अब इन दिनों उत्तर गोलार्ध में ठण्ड और दक्षिण गोलार्ध में गर्मियां आ जाती है| 

फिर भी आपको लगे की शायद जनवरी में पृथ्वी सूर्य के पास है इसलिए उत्तर गोलार्ध में सर्दियां ज्यादा तेज नही होती हो और जून जुलाई में पृथ्वी सूर्य से दूर होने की वजह से गर्मियां भी ज्यादा तेज नहीं होती होंगी| पर अगर हम दक्षिण गोलार्ध को देखे जो वह पर की गर्मियों में सूर्य के पास होता है और सर्दियों में सूर्य से दूर होता है तो उत्तर गोलार्ध के सर्दी और गर्मी के तापमान की तुलना में फर्क नहीं आता है| 

ऐसा सोचने के लिए हमे पाठ्यपुस्तको में बनाये जाने मोडल भी शामिल होते है| आप अगर देखे की पाठ्यपुस्तको में ऐसे डायग्राम या आकृतिया होती है जो पृथ्वी की दीर्घ वृत्ताकार कक्षा को समझाने के लिए ज्यादा दीर्घ दिखा देते है| लेकिन वास्तव में पृथ्वी के कक्षा के दीर्घ वृत्ताकार का मान क्या है? अगर हम अपसौर और उपसौर बिदुओं के बिच का अंतर देखे तो यह 5 मिलियन किलोमीटर आता है जो सूर्य और पृथ्वी के बिच के दुरी के अंतर के 3 प्रतिशत है| फिर जब आप वृत्तों के दीर्घ वृत्ताकार या परवलय होने का मान निकालते तो इनका गणितीय मान होता है जो eccentricity से दर्शाया जाता है| पूर्ण वृत्त या regular circleका eccentricity मान 0 होता है| दीर्घ वृत्त या Elliptic का eccentricity मान 0 से ज्यादा और  1 से कम होता है| परवलय या Parabola का मान 1 होता है और Hyperbola का मान 1 से ज्यादा होता है| पृथ्वी की कक्षा के eccentricity का मान 0.02 है| मतलब हमारी पृथ्वी की कक्षा पूरी तरह से दीर्घ वृत्ताकार नहीं है| यह लगभग वृत्ताकार या पूर्ण वृत्त के करीब है| किताबो के मॉडल्स को कुछ मर्यादाओं में कुछ ही संकल्पनाए समझने के लिए बनाया जाता है| तो जब हम किसी पाठ्यपुस्तक या पुस्तकों के मॉडल्स को देखते है तो इन्हें वास्तविक गणितीय डाटा के साथ भी तुलना कर के देखा जाना चाहिए| 

खैर आप आज सूर्य के नजदीक होने का आनंद उठाये| 

पृथ्वी की कक्षा, पीले रंग से प्रदर्शित, सौजन्य-wikipedia

Sunday, December 8, 2019

26 दिसम्बर 2019 को दिखेगा वलयाकार सूर्यग्रहण

26 दिसम्बर 2019 को वर्ष का आखरी सूर्यग्रहण दिखेगा| यह वलयाकार सूर्यग्रहण होगा| इस तरह के सूर्यग्रहण विरले ही होते है| मैंने ऐसा ही ग्रहण 15 जनवरी 2010 में धनुषकोडी से देखा था, जो तमिलनाडू के रामेश्वरम के पास मछुवारों का एक कस्बा है| वह अनुभव काफी रोमांचकारी था| ग्रहण वैसे भी काफी मजेदार अनुभव देने वाले होते है| आकाश में चन्द्रमा और सूर्य लगभग एक ही आकार के नजर आते है| वास्तव में चन्द्रमा सूर्य से चारसौ गुना छोटा है| लेकिन सूर्य बड़ा होने के बावजूद इसकी पृथ्वी से दुरी, चन्द्रमा और पृथ्वी के दुरी की तुलना में चारसौ गुना ज्यादा है| सूर्य-चन्द्रमा का यही कमाल का आकार और दुरी का अनुपात इन्हे पृथ्वी के आकाश में लगभग एक जैसे आकार का दिखता है| इसी वजह से पुरे सौर मंडल में पृथ्वी ही ऐसी एक जगह है जहाँ से सूर्यग्रहण के कमाल के नज़ारे देख सकते है|

15 जनवरी 2010 का वलयाकार सूर्यग्रहण, धनुषकोडी 
जब सूर्य के सामने से चन्द्रमा गुजरता है तब वह सूर्य को ढक देता है और सूर्य कुछ देर के लिए चन्द्रमा के पीछे छुप जाता है| सूर्य कितना ढक जायेगा यह चन्द्रमा की पृथ्वी दुरी तथा आकाश में उसके मार्ग पर निर्भर करता है| इन्ही वजह से हमे सूर्यग्रहण तीन प्रकार के दिखाई देते है|

आंशिक सुर्यग्रहण: आंशिक ग्रहण में चन्द्रमा सूर्य के सामने पूरी तरह से नहीं गुजरता और कुछ ही हिस्से को ढक पाता है| इस प्रकार में अगर चन्द्रमा सूर्य को 99% प्रतिशत भी ढक ले फिर भी आंशिक ही गिना जाता है|

पूर्ण सूर्यग्रहण: इस प्रकार में सूर्य पूरी तरह चन्द्रमा के पीछे छुप जाता है| इस ग्रहण में चन्द्रमा का सापेक्ष आकार सूर्य के बराबर या सूर्य से बड़ा होता है|

वलयाकार सूर्यग्रहण: इस ग्रहण में चन्द्रमा सूर्य के सामने से गुजरता तो है पर चन्द्रमा का आकार छोटा होता है इस वजह से सूर्य की डिस्क का बाहरी हिस्सा खुला ही रह जाता है और यह हमें वलय के आकार का दिखाई देता है| वलयाकार ग्रहण में चन्द्रमा पृथ्वी के परिक्रमा कक्ष में ज्यादा दुरी पर होता है इसे अपॉगी apogee पॉइंट कहा जाता है| पृथ्वी से ज्यादा दूर होने के कारण ही चन्द्रमा का आकार आकाश में थोडा छोटा नजर आता है|

सूर्यग्रहण के प्रकार आंशिक, पूर्ण और वलयाकार 

कोई भी सूर्यग्रहण पृथ्वी पर सब जगह से नही दिखाई देता| इसकी वजह यह है की चन्द्रमा की मुख्य परछाई या छाया का आकार बहोत छोटा होता है| इसकी चौडाई कुछ सौ किलोमीटर के आसपास ही होती है| पृथ्वी के जिस हिस्से से गुजरती है उसी जगह से उन्नत ग्रहण या Maximum Eclipse दिखाई देता है| चन्द्रमा की उपछाया वाला हिस्सा जिन जगहों पर से गुजरता है वहा से ग्रहण का कम हिस्सा दिखाई देता है| मुख्य छाया से आपकी दुरी जीतनी ज्यादा होती है उतना ही कम ग्रहण आप देख सकते है| जब भी ग्रहण हो तो मुख्य छाया के केंद्र के करीब रहना ज्यादा बेहतर होता है|



26 दिसम्बर वाले ग्रहण की छाया दक्षिण भारत से गुजरेगी| इस छाया के मार्ग में आनेवाले मुख्य शहर कन्नूर, कोइम्बतुर और डिंडीक्कल है| इस छाया की चौडाई लगभग 150 किलोमीटर है और यह छाया सऊदी अरब से होकर भारत, श्रीलंका, सिंगापुर और फिर प्रशांत महासागर में ग्वाम द्वीप तक चलेगी| ऊपर दिखाए गए एनीमेशन में आप इस छाया का मार्ग देख सकते है| भारत में यह सुबह 8 बजकर 5 मिनट से शुरू होगा| वलयाकार स्थिति में 9 बजकर 24 मिनट  से 9 बजकर 27 मिनट तक रहेगा| फिर 11 बजकर 5 मिनट पर पूरा हो जायेगा| भारत के बाकी हिस्सों से यह आंशिक रूप में दिखेगा|

ग्रहण की मुख्य छाया का हिस्सा गहरे रंग से दिखया गया है, उन जगहों पर वलयाकार ग्रहण दिखेगा| बाकि जगहों पर आंशिक ग्रहण दिखाई देगा| सौजन्य - विकिपीडिया
सूर्य ग्रहण देखने के लिए आपको विशेष सावधानी लेनी होती है| सूरज की किरणे हमारी आँखों को नुकसान पहुंचा सकती है| इसीलिए सूर्य ग्रहण के लिए बने फ़िल्टर चश्मों से ही सूर्य ग्रहण देखना चाहिए|

ग्रहण को लेकर और भी जानकारी मैंने मेरे इसी ब्लॉग में लिखी है| उसे आप इस लिंकपर जाकर पढ़ सकते है|  http://amolkate.blogspot.com/2018/06/

Reference
1. विकिपीडिया - https://en.wikipedia.org/wiki/Solar_eclipse_of_December_26,_2019
2. अनिमेशन - https://www.timeanddate.com/eclipse/solar/2019-december-26
3. space.com
4. NASA Eclipse website

Thursday, October 3, 2019

कैसे नापी गयी धरती की परिधि?

हमारी धरती का आकार कितना बड़ा है यह हमने कब जाना होगा? काफी लोगो का मानना है कि कोलंबस जब हिंदुस्तान की खोज में समुद्री यात्रा पर निकले थे तब उन्होंने धरती का आकार नापा था| लेकिन कोलंबस को जो आंकड़ा मिला वो आज की तुलना में काफी छोटा था| कुछ लोग मानते है कि जब कोलंबस के बाद लोगो ने दूर की समुद्री यात्रायें शुरू करी तब उन्होंने धरती का आकार नापा होगा| लेकिन धरती के आकार को उससे भी कई सदियों पहले नापा गया था|  यह कारनामा किया था एराटोस्ठेनिस ने वह भी दो हज़ार साल पहले,तब तक इंसानों को ना अमेरिकी महाद्वीप के बारे न पता था और ना ही ऑस्ट्रेलिया या अन्टार्क्टिक महाद्वीप के बारे में| तब तक प्रशांत, अटलांटिक और हिन्द महासागर भी पूरी तरीके से इंसानों को पता नहीं थे| (यहाँ हम उन इंसानों की बात कर रहे है, जिन्होंने इतिहास लिखा है| वैसे अन्टार्क्टिक को छोड़ कर सभी महाद्वीपों पर इन्सान बसते थे| लेकिन उस दौर में बहुत कम सभ्यतायें एक दूसरे के बारे में जानती थी|) आज की दुनिया के मुकाबले मान लीजिये हमे सिर्फ एक चौथाई धरती की ही जानकारी थी| फिर भी एराटोस्ठेनिस ने पृथ्वी को लगभग सही ही नाप लिया था|

एराटोस्ठेनिस के समय की दुनिया का मानचित्र
एराटोस्ठेनिस का जन्म कायरिन (Cyrene) नाम के शहर में 276 इसा पूर्व में हुआ था| यह शहर उस समय ग्रीक साम्राज्य का हिस्सा था| आज यह जगह शहात नाम से जानी जाती है और यह लीबिया देश का हिस्सा है| एराटोस्ठेनिस ने अपनी शिक्षा अथेंस शहर से पूरी की और शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने मूल शहर कायरिन में वापस आ गए| तीस उम्र की आयु में उन्हें अलेक्झांड्रिया (Alexandria) शहर के शासक टोलेमी III ने अपने बेटे की पढाई के लिए शिक्षक के रूप में नियुक्त किया| उस दौरान अलेक्झांड्रिया लाइब्रेरी के मुख्य लाइब्रेरियन का देहांत हुआ तब अलेक्झांड्रिया के शासक ने एराटोस्ठेनिस को मुख्य लाइब्रेरियन नियुक्त किया|

एराटोस्ठेनिस में कई हुनर थे| उन्हें कई विषयों में महारथ हासिल थी जैसे भूगोल, खगोल-विज्ञान, गणित, साहित्य, काव्य और इतिहास| उनके द्वारा कहा गया सारा काम अतीत में कही गुम हो गया|  एराटोस्ठेनिस के काम की जानकारी हमे दुसरे दार्शनिकों से मिलती है, जैसे क्लेओमेडस, प्लीनी, स्ट्राबो और टोलेमी|

धरती का आकार
उस जमाने में लोग जानते थे कि  हमारी धरती का आकार एक गोले जैसा है| इस निष्कर्ष पर लोग कई अवलोकनों के आधार से पहुंचे थे| जैसे उस वक़्त समुद्री यात्राओं पर जानेवाले जहाज दूर समुद्र में जाते तो किनारे पर से दिखता था कि धीरे धीरे जहाज का निचला हिस्सा डूब रहा है| फिर ध्वजस्तम्भ डूबता दिखता और फिर बाद में उस पर लगी ध्वजा भी डूबती दिखती| लोगो को लगता की जहाज डूब गया है| लेकिन कुछ दिनों बाद वही जहाज किनारे लौट आता| यह इसीलिए संभव है जब धरती गोल है और इसी वजह से जहाज धीरे धीरे दृष्टिक्षेप से ओझल हो जाता| दुसरे अवलोकन मे चन्द्रग्रहण के वक़्त जब धरती सूरज और चन्द्रमा के बीच आ जाती तब चन्द्रमा पर धरती की गोल परछाई दिखाई देती थी| लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था की धरती का गोला कितना बड़ा होगा| इसे नापने की कोशिशे तो बहुत लोगो ने की पर किसी को सफलता नहीं मिली| उस वक़्त तक ज्यमिती विषय पर लोगो की समझ बन गयी थी| इसी ज्यामिति का उपयोग कर एराटोस्ठेनिस ने धरती का आकार नाप लिया|

एराटोस्ठेनिस काम के सिलसिले में अलग अलग शहर यात्रायें करते थे| ऐसे ही एक दिन वह अलेक्झांड्रिया के दक्षिण स्थित सायन (Syene) शहर में थे| दोपहर के वक़्त उन्होंने देखा की एक कुँए में सूरज की रोशनी सीधे कुँए के तल तक पहुंची हुई थी| सायन में उस दिन सूरज सीधा माथे पर था और आसपास के चीजों कि छाया भी सीधे निचे बन रही थी| (सायन शहर जो आज आस्वान नाम से जाना जाता है, उसकी स्थिति कर्क रेखा पर है| हम जानते है कि 22 जून को सूर्य इस रेखा पर होता है|) फिर अगली बार उसी दिन जब अलेक्झांड्रिया में थे, उन्होंने देखा की सूरज माथे पर होने के बावजूद चीजों की छाया पड रही थी| उन्होंने सोचा कि सायन में इसी दिन चीजों की छाया सीधे निचे बनती है, लेकिन यहाँ पर तो ऐसा नहीं हो रहा है| मतलब सूरज से आने वाली किरणों का कुछ कोण बन रहा है| यह तभी मुमकिन होगा जब धरती गोल होगी| अगर सूरज की किरणों का कोण मापा जाये तो पृथ्वी का आकार भी पता किया जा सकता है|

एक ही दिन सायन और अलेक्झांड्रिया में पड़नेवाली किरणों का कोण अलग बनता है|
अगर हमे वृत्त पर बननेवाला कोण पता है और और चाप का मान पता है तो हम वृत्त की परिधि निकाल सकते है| एराटोस्ठेनिस ने उस दिन सूरज की रोशनी का कोण एक छड़ी की सहायता से नाप लिया जो 7.2 डिग्री था| सूरज की किरणे धरती पर सामानांतर रूप में गिरती है, तो छड़ी से बनने वाला कोण वृत्त के केंद्र से बननेवाले कोण का एकांतर (alternate angle) कोण भी होगा| एकांतर कोण एक दुसरे के समान होते है| एराटोस्ठेनिस को अलेक्झांड्रिया और सायन के बिच दुरी पता थी, यह था हमारे धरती के वृत्त का चाप| यह मान 5000 स्टेडिया था| स्टेडिया, दुरी नापने की ग्रीक इकाई थी| यह इकाई ग्रीक स्टेडियम याने उनके मैदानों के बराबर थी| एक स्टेडिया का मान उस समय ग्रीक में अलग था और मिस्र में अलग था| ग्रीक में एक स्टेडिया आज के 185 मीटर और मिस्र में 157 मीटर बराबर है|

आकृति 1
अलेक्झांड्रिया और सायन की दुरी के साथ वृत्त के एक कोण और पुरे वृत्त के कोण की तुलना कर पुरे वृत्त का मान निकाला जा सकता है|

360 डिग्री / 7.2 डिग्री = धरती की परिधि / अलेक्झांड्रिया और सायन की दुरी

360 डिग्री / 7.2 डिग्री = धरती की परिधि / 5000 स्टेडिया

धरती की परिधि = 50 X 5000

धरती की परिधि =  2,50,000 स्टेडिया

एराटोस्ठेनिस ने धरती के आकार का मान 2,50,000 स्टेडिया निकाला| अगर आज के हिसाब से इसे देखा जाये तो,
2,50,000 X 157 मीटर = 3925०००० मीटर यानि 39,250 किलोमीटर
यह मान आज के आधुनिक तकनीक से नापे गए मान के लगभग बराबर था|

सिर्फ एक छड़ी की सहायता से सूरज की किरणों का कोण नापकर एराटोस्ठेनिस ने पूरी धरती का आकार नाप लिया था| जो उस समय पृथ्वी को मुठ्ठी में कर लेने के बराबर ही था| आज भी ज्यामिति और एक छड़ी की मदद से हम पृथ्वी के आकार को नाप सकते है|

एराटोस्ठेनिस (276 ईसा पूर्व- 194 ईसा पूर्व)